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चौपाई
रिक राय करें प्रसन्न | कौण कौरा संगति हुवा मौन || कैसी कैसी पाई ग्राम तिरका व्यवर सुरगावो नाम ।।४२५१ ।।
वाशी एक तसु भेद अनेक सिद्धार्थ रतनवरघन राय ।
सुसीमा नन्द आनदकंद 1 सुमति महा विधि सेतो चंद || जनवल्लभ इंद्रध्वज सतवाहन । हरि सुमित्र धर्मं बलवांन || ४२५३।०
संपूरन नंद सुधन सांत । सहम स्वेतांबर भये छह भांत || केई गये पंचमी गति हैं स्वयं लोकी १४२५४॥
रामचन्द्र लक्ष्मरण द्वारा दुःख प्रकट करना
प्राणी कर व्याख्यान मनेक ।। बुशहन जंबुनद परि भाव ॥४२५२।।
रामचंद्र लखमण बिललाइ । भरत बिना कछु चित्त न सुहाइ ॥ हा हा कार भए चिहुंओर | आभूषण सब हारे तोडि ।।४२५५ ।।
बापुराण
रुदन करें फाड़े सब चीर 1 रुदन करें बहु चलं जल नीर ॥ हाम भर हम पाए क्यूं हम भी तो संग दिक्ष्या ल्यू ||४२५६ ॥ तुम बिन कैसे जीव बोर । तुम विडे बहु पार्ने पीर ॥ तब मंत्री समभाव बन । सुखी बात चित राखो चैन ॥४२५७ ||
राम का राज्याभिषेक
'भरथ ने कीये उत्तम फर्म 1 रघुब सी कुल उपन्या धर्म || सब परिवार चढाई रती । श्राप करी मुक्ती को गती ।।४३५८२
करो राज मच कालो कलस । परजा सुख पावें ज्यु सरम ॥ राम करें राज का काज । लक्षमण राज करो महाराज |१४२५६॥
लक्षमण चले सभा संयुक्त आए रामचन्द्र के पास
सब नरपति लक्षमण पे गये । नमसकार करि गई भए । प्रभुजी चलो करो तुम राज । पटाभिषेक करो तुम आजि ।।४२६० ॥
पट ऊपर बैठे दोज वीर द्वारे फलस एक सो ग्राठ
बाजंतर बाजया बहुत ॥ दोऊ भ्राता मन उल्लास ।।४२६१।।
रतन कनक कलस भरि नीर ।। । पदम नरायण राज का पाट ||४२६२॥