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मुनि सभाएंव एवं उनका पद्मपुराण
मृदधत निकल्या देसांतर गया । गुरुसंगत विद्यारथी भया ।। बसंत नगर मे विद्या पाइ । बहुर पोदनापुर में प्राइ ।।४२१३॥ ग्रीष्म रित त्रिषा अति लगी । वित्र गेह माता यी सगी ।। तिहाँ प्राइक मांग नीर । महिनी साह्मणी माई तीर ॥४२१४।। भरि भारी पाया जल ताइ । प्रवर चला नयनु परिवाह ।। सब परदेसी पूछ बयन । तै को माता भरे जल नैन ।।४२१५।। कहे बंभणी मेरे था पूत । बाहिर नीकल्या दुःख बहुत ।। जे ते देख्या बँ तो कही । तो मोफु समझायो सही ।।४२१६॥ जब वह वोल्या मैं हूं तेरा पूत । मब हूं विद्या पढे बहूत ।। सकताक' पिता महिणी माम । मिल्या पुत्र कंठ लगाय ॥४२१७।। जिहाँ विहां प्रादर होइ । जोतिग बंधक पूछ सब कोइ ।। बहुत दिना सुभमारग चले । मंत फेर खोर्ट मति गये ।।४२१८॥ सात विसन सेव्या दिन रात । धर्म छोरि कुहाचे कुजात ॥ वसंत अंगना बेस्या रित भया । का संगति सगला गुण गया ।।४२१६।। मात पिता का खोया दवं । वाको बुरा कहैं हैं सर्व ।। लज्यावंत होय देस ही तज्या । ससांक नन गया वह भग्या ।।४२२०।। नंदवन शमा के भंडार । चोरी निमित्त गए तिह बार ।। भूप मता राणी सू कर । प्रभात समय हम दिव्या धरै ।।४२२१।। अंसी चीवर सांभली बात । समझिम्मान कंप्या बह गात ।। इतनी विभय राय ने त्याग । मनम्यां धरा बहुत बराग ।।४२२२।। मैं जन्म्या मात पिता के जाम । भिक्षा करि करि पोषी काय ।। खोटे फरम कमाये धरणे । अब प्रायश्चित कहां लुगिरणे ।।४२२३।। मदमत्त गया ससांक मुनि पास । दिक्षा लई मुगति की आस ।। गंग गिर पै परीम सहै । गुरा निवांन मुनिवर लिहो रहे ॥४२२४।।
विद्या पटि समवित चिन घरचा । गुणनिधान केवल तप फुरचा ॥ सुरपति नरपति पूजा करी । देखि विप्र जिन दिष्या धरी ।।४२२५।।
प्राचिरज भया सबां के चित्त | कईसी भयाकै मन पिति ॥ मास उपवासी त्यार्य ध्यान | ब्रह्मोत्तर पाया मु विमाण ॥४२२६।।