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पद्मपुरास
लक्ष्मण द्वारा हाथी के सम्बन्ध में जानकारी चाहना
लक्षमण पूछे द्वे कर जोडि 1 हाथी की कथा कहिये बहोड ।। किरण कारण इण कीया दुद । समता भई भरत कू वंद ।।४१४२।। केवल लोचन ग्यांन अगाध । पूजत हैं प्राणी के साध ।। नगर प्रजोध्या नाभि नरेस । मरुदेई सरस्वती के भेस ॥४१४६१ सरवारय सिच रिषभ देववास 1 छह महिना मागे परफास ॥ भई भोमि कन क सी सरब । रतनवृष्टि वरण्या वह दर्व ॥४१४४।। गरम जनम काल्याणक भए । सुरपांत खगपति सब ही नए ।। बनवृषभनाराच संस्थान । प्रथम जिनेन्द्र महा बलवान ।।४१४५।। लख त्रियासी पूरव राज । पार्छ किये धरम का काज ॥ चार सहस्र मपती साथ | आतम ध्यान धरै जिन नाथ ॥४१४६।। जसे सुदरसन अटल मेर। असे तप साधै मन धेर । अनि भूप सहि सके न भूख । लगी त्रिषा मन लाग्या सूख ।।४१४७।। तव वे मुनि कर विचार । जई फिर जाउ नगर मझारि ॥ मार भरथ सहु मैं ठौर । तात मत हम थाप मार ॥४१४८।। दरसन च्यारि निराले भए । उनने भेष निराले किये 11 उनमें भृष्ट भया मारीच 1 ग्यानामृत तें सब को सींच ।।४१४६।। सुप्रभा राजा प्रहलना प्रस्तरी । ते भी बसें अजोध्या पुरी ।। पुत्र दो वाकै गम भए । सूर्य उर्दै चन्द्र उर्द निरभये ।।४१५०।। जब वे कुचर जोबन के बैंस । मारिच पास सुण्यो उपदेस ।। संन्यासी का साथै जोग । छोडि दिया संसारी भोग ।।४१५१।। ध्यारू' गति भरम्या वे दोइ । कबहं देव मनुष गति होइ ।। कबहुं कि तिरजच गति फिरें । तप कार राज पुत्र अवतरै ।।४१५२।। हस्तनागपुर हरिपति भप । मनोनता राणी सु स्वरूप ।। तास गर्म चन्द्र उधम जीन । कुल कर नाम धरम की नींव ॥४१५३।। विश्वकर्म विप्र अगनिकुल नारि । सूरज उदय लिया अवतार ।। सुरति रति माम पुत्र का घरचा । बेद पुराण विद्या सूभरचा ॥४१५४।। हरपति राजा तपा गया । राजभार कुलकर दिया ।। सुरति रति प्रोहित भूपति हेत । संन्यासी महंत शिष्य सों हेत ||४१५५।।