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मुनि सभाम्रक एवं उनका पपपुराण
जो कोई कहै सो कर उपाव । कोई न जाम उसका भाव ।। अपनी प्रपनी सम ही कहैं । भोई बदन कोई रहै ।।४१३१॥
करें जतन सब गुणीजन, बद्मक ग्रंथ विचार ।।
मन की को जाग नहीं, रहे सकल पनि हार ।।४१३२॥ दति श्री पद्मपुराणे त्रिभुवन असंकार समाधान निधान
७८ वा विधानक
चौपई देश भूषण कुलभूषण मुमि का मागमन
देशभूषण कुलभूषण केवली । प्रजोध्या प्राए पूजी रली ।। महेन्द्र धन प्रति उत्तम थान । सो क्षेऊ चन्द्र अरु भान ।।४१३३।। तीन लोक में प्रगटे मुनी । रामचन्द्र लक्षमण मह सुनी ।। रघुपत्ति मन में भार उछाछ 1 दरमन हित चाले नरनाह ।।४१३४। भरथ सत्रुधन चारों वीर । सोहैं कंचन वर सगर ।। विमुवन अलंकार हस्ती फ्लाण । तिहां बाजे आनंद निमाण ।।४१३५।। सुग्रीव नील अंगद हनुमान । भूपति संग चले बलवान ।। अपराजिता अर केकईया । मुप्रभा संग चाली बहु त्रिया ।।४१३६।। सीता आदि चली बहुनारि । प्राने लोक सफल परिवार ।। पहुँने धन तब उतरे भूमि । दर्णन पाय चरण को झूमि ॥४१३७।। दई प्रकमां करी इंडोत 1 काही वाणी धरम उद्योत ।। कमी विध धरम जती का होइ । कैसे श्रावण पालें सोइ ॥४१३८।। केवलग्यानी शान अपार । कह धरम मुनि प्रामा प्रधार ॥ घरम समान सगा नहीं कोइ । धरमही नै ऊंची गति होइ ।।४१३६।। धरम सहाय जीव के सम । अन्यवि बरज्या रंग पतंग ।। मैसा है संसारी भीग । कबहु साता पसाता जोग ।।४१४०।।
बरमाह सेती इन्द्र फणीन्द्र । सकसि पर देव जिणंद ।। ऊंची गति बहरि निराणा । पाव मोक्ष मासता थांन ।।४१४१६