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पचपुराग
मींडक जीव मूस गति पा4 1 हाथी ते दिलाव गति प्राय ॥ मूसा कु दिलाव किया भक्ष । दोनं उपज्या जल में मच्छ ।।४१७०।।
कुकडा मच्छ बिलाव में मुसा । धीवर ने गह्या जाल में धस्या ।। उहां से मरि बोभण के गेह । राजमही नगर विप्र का एह ।।४१७१।। बहु बाके सिंध जजलका अस्तरी । मंतर सौ पुत्र जपे सुभ पड़ी ।। प्रथम रमन दूजा विनोद । मात पिता ले पाले गोद ॥४१७२।। जोवन समै विचार एह । रमन धरै विद्या सुनेह ॥ कुपद मनुष पसू तें बुरे । जिन कछु भेद चित्त नहीं घरे ।।४१७३।। पशु भला जो उठा बोझ । मूरख जैसा जंगल रोझ ।। गुनी होय तो समझे ज्यान । कुपढ़ कहा जान पहचान ।।४१७४।। गुण ते राज सभा में काण । पादर भाव सदा सनमान । गुण हीणां जैसे बिनुमति । जैसे पंखी बिनू पाखि ।।४१७५।। अंसी सोच वाणारसी गया । गुरु पं जाय चरण • नया ।। सिहां सिष्य पड़े थे घने । सेवा करें उन विग भरणे ॥४१७६॥ वै सिष्य भोजन देव याहि । रमन पड़े मन में उछाह ।। च्यारू बेद पड़े मन स्याइ। छिया कला सीष्या बहु भाइ ।।४१७७।। गुरु प विदा होय करि बल्या । राजग्रही बन देख्या भला ।। बर्षा भई घनहर घनघोर । बरषा भई बन नाच्या मोर ॥४१७८।। भीजत चस्या रमण तिण वार । देख मढी इक वस्त्र उतार ॥ वस्त्र निचोड वह सूतो तिहां । स्थामा भावज प्राई जिहां ।।४१७६।। विनोद त्रिया असोग दत्त सूनेह । जन कीया वचन जष्य के गेह ।। जब उठ स्यामा बन गई। विनोद विप्र तरवार नांगी सई ।।४१८।। श्रीया पाछ चाल्या लाग । असोगदत्त अ यावे या जाग ।। कोटवाल के प्राया हाथ । बांध मसक वह ले गया साथ ॥४१८१।।
गई वांभणी मंड के बीच । रमन सोचे था लागी मीच ।। विनोद जाणं यह इस का जार । खडग फाति तसु सीस उतार ॥४१८२।।
देह छोडि मैसा भया अंध 1 दोनू जले वयर सनमंघ ।। भये भील मृग गति पाइ । वन मैं रहे वायू भए काह ।।४१८३।।