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पद्मपुराण
दंडक वन देख्या राम । तुम इसके हसे या हमि ॥ उहां ते बाई देखी वह नदी । चारण मुनी आए ये जटी ||४०३६ भोजन दान दिया था उने । जटा पंखी पूरव भव सुने । जटा पंखी इत सेती गह्या । रावरण वां के प्राण कु दह्या ||४०४० ||
गिर पर्वत देख्या वही । देसमूषरण कुलभूषण सही ॥ उनु का जब उपसर्ग निवार । केवल म्यान लखा णि बार (४०४१ बालखिल्य जिहां था भूप । कल्याण माला पुत्री सुम्वरूप ।। पापम
। ५२॥
दशांग नगर बाकर नरेस तिहां प्राय परदेसी भेस ।। उन दीया या हम त आहार वाको दुःख चले थे टार ॥ ४०४३। अयोध्या दर्शन
श्राए तिहां प्रजोध्यापुरी। कंचन मंदिर सोभा अति खरी ॥
सीता पूछ इह नगरी कोण | कनकमय दो हैं जिहां भौन ॥ ४०४४ ॥
लंकां है दीसे आगरी । बसें सघन उत्तम जन भरी ।।
रामचंद्र बोले समाइ । अजोध्या जनम भूमि यह होइ ॥ ४०४५ ||
विद्याधरें संवारो न । सा कोई अवर न थांन ॥ श्राए जिहाँ बीस बेहुरे । रिषभदेव सोमें प्रति खरे ||४०४६ ।।
उत्तरे भूमि जिनदरस निमित्त । भरत सत्रुधन आए पहुंत ॥ देखी सेन्या घरी विभूति । पुहपक विमा सोभा संजुक्त ||४०४७|| राम लक्ष्मण भरत शत्रुधन मिलन
रामचंद्र लखमण के पाउ । भरथ सत्रुघन लाग्मा परि भाउ || उनु लगाया जननं कंठ छूटि गइ मन मोहिली गंठ ॥४०४८
मैंगल डोर लाख पचास । श्रस्य रथ पाइक चहु भास ॥ देखें नारि पुरुष सब लोग । सब नगरी में मिट गया सोग ||४०४३ ॥ पुहपक विमाण परियारू वीर । सो कनक वरण सरीर ॥ मोती माक हीरा लाल । बाले रामचंद्र परि उछाल ।।४०५०।।
सीता सती बहु सोमं पास जैसे पूनम ज्योति प्रकास || विधित कू देखि लोग सब कहूँ। चंद्रोदिक सुत इने संग रहें ।। ४०५१५०
जब खरदूषण सू भई मार । तब विराधित किया उपगार ||
दंडक वन ले गए पाताल | रामलखण पहुंचाए हाल ।।४०५२ ।