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नारद द्वारा अयोध्य अम
पद्मपुराण
नारद कथा प्रजांच्या कही । अपराजिता कई सुख नहीं ॥ ४०६३ तुम कारण करें दिन रमरा । उनके मन को नाहीं चयन || जो तुम उनकी सुध ना लेहु । प्रासा तर्ज जांणी निसंदेहु ||४०१४।। वेग चलो तुम मेरे संग । सोग वियोग सब होवे मंग ३| रामचन्द्र लक्ष्मण सुगि बेन । व्याया मोह भरे दोऊ नैंन ॥ १४० १५॥
राषित सुग्रीव गद हनुमान | इनको प्रस्तुति कहीं यखानि ॥ तुम कीया परमारथ कांम तुमसे रही हमारी माँम ||४०१६ || परदुष्व मंजन तुम भूपती । तुमसों उर हों हां किम भर्ती ॥ भावमंडल की प्रस्तुति करें। तुम तं ए सब कारज सरं ||४०१७।। बहिन तरी मेटया सव दुख । तुम प्रसाद हुआ सब सुख ||
भीषण सु बोले रघुनाथ । जे तुम धांनि मिले हम साथ ||४०१८| तो हम जीत्या लंका देस । हमारा तुम मान्या उपदेश || अजोध्या की हम करि हैं गोन। तुम उपगार सकेँ कहि कौन । ४०१६ लंका राज हम तोकू दिया। भभषा बहूरि चरण को नया ॥ मेरी अरज सुग्गों जगदीस करो राज तुम बहुत बरीस || ४७२०|| हू' सेवग विनर्क कर जोडि | मात मुलावों इस ही ठोर ॥ हम पे राज सधैं कि भांति । मैं सेवग सेक दिन राति ||४०२१ ।।
रामचन्द्र बोलें लनमरणा । जनम भौम देखा को मना || फिर बोले भभीषण राह | सोलह दिवस रही इस दाइ ॥ ४०२२ ॥ अयोध्या में राम द्वारा बूत भेजना
सावधान हो जन सगर ॥
भेज्या दूत अयोध्या नगर विद्यग्धर तिहाँ भेज्या दूत । अपराजिता प्रावल देखे ल ||४०२३॥ अपए दूत भरत के पास सुखी जीत मन भया हसास || asta दिया दूत को दान । प्रादर भाव किया सनमान ॥२४०२४ ॥ अपराजिता केकई में श्रान । सुखे बचन भया मन प्रोन ॥ पीछे श्रावत देखी संन । बहुत हूवा नगरी में चैन || ४०२५ ॥
रतन कंचन बरसे सिंह घरी । सब अयोध्या कंचन सू भरी ॥ भरत भूप यह श्राग्वा दई । अयोध्या फेर समारो नई ||४०२६॥