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पपपुराण
असे लोभ वे जीव नै दुःख । नई पहचाई तिहां नहीं सुख ।। इह विभूलि सपणं चरिणहार । अब हूं ल्यू' संयम का भार ।।४०६४॥ करें विचार भरय भूपती । किरण ही प्रकार होस्थुजसी ।। अब जहूं संयम प्रत धरू । सकल लोक मुज भास बुरू ॥४०६५॥ भब लू राज अकेल करा । रघु ने देख जैन प्रत घरचा ।। कछु राखिये लोकाचार । कछु कीजिये जीव का प्राधार ।।४०६६।
जसें केहरि पिंजरा मांझ । इम भरथ विचार वासुर सांझ । राम से भरत को प्रार्थना
. रामचन्द्र सों बिन भरथ । माग्या घो तो लेहुं चारित्र ॥४०६७।। राम का उसर
रामचंद्र समझावं बात । तो का राज दिया है तात ।। हम पाग्या देथे कू कौन । सुमारे मिलन कू किया था गौन ।।४५६|| करो राज परजा सुख देहु । चाउथ पाश्रम दिल्या लेहु ।। चक्र सुदर्शन तुम पै रहो 1 जो कुछ भाग्या हमसू कहो ||४०६६ छत्र धरावी अपने सीस । तुम हो सन पृथ्वी के ईस ।। सत्रुधन पमर दारंगा खड़ा । लक्षमण मंत्री सब गुण बडा ॥४१००। सीन पंख का भुगतो राज । हमने नहीं राज सौ कान । करें वीनती भरत कर जोडि । कीया भोग मछु रही न खोडि ।।४१०१।। स्वर्ग लोक सुख देखे बरणे । तो भी जात न जाणे मसे ।। इह विभूति बिनसत नहीं वार । माया में मरि धर्म संसारि ।।४१.२५ ऊप नीच गति भरमै जीव । सुभ प्रसुभ की बांधे नीव ।। करो दान पालो रतन तीन । च्यार दान विष सौं द्यो नित्त ।।४१०३।। दयाभाव सों राखो चिस । सुन दुस्ख सम जाने मानवंत ।। समझा मंत्री परवीन दया दान राखो मन चित्त ।।४१०४।। कारिमो दोस परिवार। कोई न चल जीव की लार ।। धरि चारित्र लहूं गति मोक्ष । सिहाँ सासत्ता सुख संतोष ॥४१०५।।
स्यंषांसन सौं उतरना भरय । तब लक्षमण कर है थुलि ॥ भरत को पुनः राम के द्वारा समझाना
अब ही तुम मति छडो राज । जोबन सम नहीं तप का काज़ 11४१०६।।