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पद्मपुरा
सीजा कोट सब ही तें बडा । पातिका तीन निरमल जल भरया || याक' पोल वा किवा | हस्ती पोल बनी मभर ||४०६५।। जिन प्रतिमा की महिमा घणी । ढालि कलस प्रति सोभा दरी ॥ रतनजोत सो चिहुं घोर | चंद्रमा बरणे घणे सब ठौर ||४०६६ ।। बी पुतली जिहां लंजत सोमे सब ठामै बहु संत ॥ वृक्षावली का वर्ग कटाव जनू को कहां लग वरणाव ||४०६७ || सभामंडल झरोखा सु प्रनूप । सुख सेज्या परि पोहे भूप ।। हू सुगंध पाटंबर तिहां मानसभ बिराजै जिहां ॥ ४०६६ ।।
पट्ट फिरें सिर छ । अमर करें गंगाजल जत्र ॥
सो सहस्र मुकट बंघ राई करें सेव तेव मन वच काई ||४०६६ ।। वैजयंती सभा तहां जुड़ी । बर्द्धमान मंदिर रिध बढ़ीं ।। अनोपम गदा खडग कनकार सूर जहां सुसोमं तरवार ||४०७० ।। बच्या समुद्रावत्तं । सा धनुष बहु सोभा धर्त ।
उत्तम वस्त्र सोमं सब अंग । जर्क सुबसन वरले पचरंग ॥ ४०७१ ।। पंचास लाख गउ को खीर । छपन लाख गज लक्ष्मण धीर ॥ सत्तर कोटि नगर में झांन तीन खंड के भूपति जान ॥ ४०७२ || सेव करें नित सकल नरेम । नरपति खगपति मानें प्रादेस || चक्र सुदर्शन जोति प्रपार गर्दै तीन लोक मझार ||४०७३।। च्यारू नीर पट्ट बैठे नित्त । सकल सभा में उनु का चित ॥ वन उपवन के फल अरु फूल देखि ताहि पथि करि हैं भूल १२४०७४। उछले जल फिर उतरें भूमि । वृक्षावली तिहां रही भुमि ॥ मंदिर करणे सब रोस के भने | तिहां बैठि नृप मान ले ॥४७७५ ।। निर्मल नीर बहे तिहां गंग ॥
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उह गढ की मोट || ४०७६ ।।
रघुपति सेव ॥
श्रस पास पर्वत उतंग गिरवर ते इहै ऊंचा कोट छिपे भानु सुर्ग सुख तजि मोहे देव । अजोध्या इं रामचंद्र की श्रागन्य भई । धर्मसाला सब रायो नई ॥ ४०७७॥ पर्वत परिस्थाल किये। नगर नगर जिन मंदिर भए । अटूट भंडार घट है नहीं । भोग्य भूमि सब है नहीं ।। ४३७८ ।। सीता की नगर में चर्चा
नगर नगर चर्चा इह चली। रामचंद्र कौनी नहीं भली ॥ सीता कू रावन ले गया। सीतां का सत कैसे रहा ||४०७६