________________
पुनि समाचब एवं उनका पपपुराण
सकल गेह कंचन के किये । रतनजडित चित्रसाली किये ॥ विद्यापर माये सूत्रधार । ते मंदिर प्रति भले संभार ।।४०२७।। जे जे द्रव्य हीण था लोग 1 तिण का मेटचा सब ही सोग ।। जे कोई नगर गये ये छोडि । उह दुनिया से प्राणि बहुरि ॥४०२८।। बहुत लोग अन्न भी बसे । लंका से यह प्रधिकी दिस ।। राजामंदिर सब से भला । देखतही सब का मन खुला ॥४०२६।। बारह जोजन लांबी मही । दस जोजन चोदाई सही । मगरी का कंधन मई कोठ । अन्य सह मिट गई सउद ।।४०३०॥ श्रीजिन का चैत्याला कियो । प्रादिनाम मंदिर तिहाँ भए ।। दोई सहस यंभ की साल | सहन कूट सोमं सुविसाल ।।४०३१।। सहन थंभ की वेदी वणी । बंदरवाल मोती की मणी ।। सहस्र एक ध्वजा तिहां लगी । रतन जोति चहुँदिस जगी ।।४०३२॥ कमल सरोवर वापिका कूप । सीतल पवन सुहावन रूप ॥ अवतीस जोजन वन बई पास । 'फूलै फसें बह वृक्ष सुवास ।।४०३३॥ सोलह दिन में संगडा सही । सुर नर देख प्रचंमें रही । रामचंद्र इह पाई सुष । बसणे की कोणी सब घुष ।।४०३४।।
मजोध्या कंचन की घणी, रतन लग्या बहु भाइ ।। अमर सुख व शोर करि, मोहे सुरपति माइ॥४०३५।। इति श्री पयपुराखे साकेत परपन विधान
७५ बा विधायक
राम सीता का अयोध्या गमन
लंका राज भभीषण दिया । अजोध्या कूपवारणा किया ।। बठि घले पूलपक विमाण । विद्यापर संग है बलवान ।।४०३६।।
त्रिकुटाचल नंकागढ़ छोरि । झाई सोमैं है चिहूं पोर ।। पुष्पक विमान से सीता को मार्ग का परिचय देना
मेरु सुदर्शन देख्यो सिया । पूर्वी कवरण ए ठाम सोभया ।।४०३७।। बोले राम सुदर्शन मे । महोछा श्रीजिन जनमत वेर । ए है जनम कल्याणक ठाम । इनका सुया पुराणु नाम ।।४०३८।।