________________
मुनि सभाबन्द एवं उनका पपपुराण
३५६
राम कपा
सर्च प्राण हित मुनि पै सुरणी । रामचन्द्र की कथा उप्प भरती ||३६६&II रामचन्द्र लक्षमण अफ सिया। दंडक वन में प्राश्नम लिया । सीता कूरावण ले गया। रामचन्द्र लक्षमण में दुख भया ॥४000) विराषित सूचीष राम सू मिल्या | रावण सूजुषा किया उनों भला ।। लक्षमण लाग्या सकती वारण । टुबा पूरछा गए परांण ॥४००१॥ दोवसामेष की चिसल्या धिया 1 उर्व जपाव लक्षमण का किया ।। सुरणी बात अपराजिता माय । गिर गई भूमि मूर्छा खाइ ।।४।०२|| में लक्षमण के मार सनि । कैंसी हुई उनू की गती ।। सीता का सुषमाल सरीर । वन बेहल तिहां अन्न न नीर ।।४००३।। बन फल खाइ रहे बन माहि। बंदी बीच महादुख ताहि ।।
आय पड़े समुद्र मंझार । कैसे पाऊं उनकी सार ३४०४।। नारद मुनि बोले समझाई। लक्षमा बीया करें उपाव ।। बांध्या कुंभकरण इन्द्रजीत । मेघनाद में किया भयभीत ||४००५ रावण ने मारी राज वे करै। तुम मन में चिंता मति पर।
अब मैं लंका गढ़ में जाइ । राम लक्षमा प्राणु इस ठोइ ।।४००६।। नारक का लंका में प्रागमन ।
नारद चाल्यो बैठि विमारण । त्रिकुटाचल कुकियो पयांन 11 पदम सरोवर रावण की चिता । अंगद क्रीडा कर सुख की लता ।। ४005|| अंतहपुर अंगद के संग 1 खेल राणी मन उधरंग ।। चउकस बैठे चौकीदार । नारद पूछ रावण सार ||४७०८।। रखवाले कहैं सुरिग रे प्रस्यांन । तू माकाम से बैठा भान ।। रावण कुमारचा लक्षमण और । रामचन्द्र सा बली न और ।।४००६।। प्राई किंकर लक्षमण सों कही । अंगद ने तब हांसी गही ।। तपसी कूल्यावो मो पास । देखेंगा राम तब कर उपहास ।।४०१०॥ हस्ती चढ अंगद सु नरेन्द्र । नारद कु' ले चाले करि बन्द ॥
धकाधकी सूककर गहिलिया । रामचन्द्र प्राग कर दिया ॥४०११॥ राम द्वारा नारद का स्वागत
रामचन्द्र नारद कु देखि । अादर दिया ऋषीस्वर प्रेष । नमसकार करि बैठाया पाट । भूपति सभा जुड़ी थी ठाट ॥४०१२॥ रामचन्द्र पूर्छ कुसलात । मुनि जी कहो परनी की बात ॥