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पद्मपुराण
घरम ध्यान लष ल्याइ कार, घरै ज संजिम भार ।। चिहुं कति भ्यंतर ना रुलै, पावै सुख अपार ॥३६॥ इति श्री पपपुराणे मधु प्राल्यान विधामक
७४ वां विधायक
भारर मुनि का प्रयोप्या में प्रागमन
नगर अमोध्या उत्तम थान । भरथ प्रताप सपै ज्यू भान ।। परजा सूखी दया चित घमणी । इन्द्रलोक की सोभाबरणी ॥३९८६।। अपराजिता मिदर सतखणे । पश्चात्ताप कर मन आपणें ॥ मेरी कुख रामचन्द्र भए । जोवन समश के उठि गये १३३६६०।। घरती पर घरते नहीं पांव । वन वेहद भ्रम दुःख के भाव । पुत्रों में देखू किरण मांति । अपराजिता रोबई मात ।।३६९॥ अन नारी ता संग । ज्यौं घनहर बरसे बहती गंगा ।। नारद मनी पाए सिरण परी। नमस्कार प्रसतुत बहु करी ।।३६६२।। चउका दिया बैठणां प्राण । बहत कियो प्रादर सनमान ॥ सीलवंत वे नारद मणी । जटाजूट याणी करि मुनी ।:३९९३॥
कमंडल पीछी कर में लिये । भसम लगाइनल धोती किये । अपराजिता से प्रश्न
पूर्छ नारद कहो मो मात । सुकोमल का कुल उसम भात ।।३६१४|| राजा दसरथ की परवगी। मुम फिम हो किम अणमशी ।। तब बोली अपराजिता माई । नारद मुनी तुम थे किस ठाइ ।।३६६५॥ रामचन्द्र लक्षमण वनवास । तिम् कारण हम रहा उदास ।। थातकी खंड में पूर्व विदेह । सुरेन्द्रपुर नगर गया था एह ।।३६६६ त्रिलोक ईस जिन का अवतार । मिदर मेरु सुरपति तिही वार ।। ल्याई करी जनम की रात । हारि कलस उपजाई प्रीत ||३११७॥ इंद्र घरणेन्द्र भारती करें। नर मानुप बह सेवा करें । प्रामपरा पहराय कीए गिगार । माता न सोप्या तिण बार ||३६९॥ नईस कप ह्या मैं तिहां । तुमारा भेद कछुअन मैं लाया ।।