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मुनि सभाषद एवं उनका पपुराणा
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सुण्या भेद रात का सेठ । प्रस्तुति कार उनकी लिंग बैंठि ।। श्री बरधन पाया भ्रूबाल । सिंघ इंद सुमिस्या सिंह काल ॥३९७३।। सील वृद्ध भाया सूमिली । क्रोध लहर दोनु की टसी ।। श्रीवर्धन जोडघा दोउ हाथ । मेरा भव भाखो मुनिनाथ ॥३६७४।। अवधि विचार कर मधु मुनि । सोभापुर नगर प्रश्री घणी ।। भद्रसेन अाधारिज तिहाँ । राजा धर्म सुरग नित जिहां ।। ३६७।। एक दिन घाल्या जती के पास । मारम में पाई खोटी बास ।। दुर्गंध ते भया जीव बुरा । राजा अपणा घर कु मुडा ।।३६७६।। एक नारी को पैसा दुख । देह वसाई गंधावै मुख ।। जिहां निकस ते गली बसा३ . : नारी यह एक प्राइ !! मुनि दरसन पाया तिण नारि । गया दुख बहे उतनी बार ।। अमल राम सुणि अघरज करै । अगुवत गुरु पास घरै ।।३६७८॥ पाठ गांव पाठ को राखि । राज विभूति पुत्र को भाषि । दया दांन विचार ग्यांन । भाउ बोकार सौधर्म बिमान ॥३६७६।। उहां ते चई श्रीवरधन भए । सुपा धरम चरण कुनाए । मित्रजसा पूछ परजा: । दह माना है किह भाई ॥३६८०॥ वित्र नै तर वे दिया सराफ । नगरी जलै उदै भयो पाप ।। बहुते लोग क्रोध की पाइ । हुतासन में दियो विप्र जलाइ ॥३९८१।। वह द्विज मर करि हुबा बस्मन । रसोई कर रामा के दिन दिन ॥ एक दिन मुनि नप के घर माइ । भोजन निमित्त ऊभा मुनिराइ ।।३६८२।। वरांमन मुनि कू विष दिया । देही छोडि सुरपद पाझ्या ।। विप्र मरि करि पहुंच्या नकं । लख चौरासी रह्या गर्क ।।३६८३॥ मित्र जसा भई अस्तरी । मसोषसरक की हुई पुत्री ॥ राजा पूर्छ एह संदेह । पुरुष सौं नारी भई क्यु एह ।।३६८४॥ काहैं सुनीसुर सुणु नरेस । अब तुम परतक्ष देखो भेस ।। राजा सुकात राज में मुषां । भोजन पुत्र सेठ की अस्तरी हुवा ।।३६८५।। अभिमानां प्रसाद लबध की असई । कररूह की राणी तब थई ।। मधु मुनि किया अंत संन्यास । ईसान स्वर्ग पद पाया वास ।।३६८६।। जे कोई धरै धरम सूचित । निस, पावें पंचम गति ।। भवजल तिर जाई सिव मध्य । तिहाँ सालती पूरए रिध ४३९८७।।