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पुनि सभाषद एवं उनका पद्मपुराण
अनंतबोध घर प्रथम जिनंद । मुगति रमणी सूख होइनानंद 11 कुंभकरण तप कर बहुत । नरवदा नदी पर केवल हुंत ||३६४३॥ सुरपति करें महोछब तिहां । देही छोडि पहुच्या सिब जिहाँ ।। मई स्वामी मुनिवर तप करें । पोदनापुर में ध्यान दिद धरै ।।३६४८॥ प्राकास मामिनी पाई रिध । सम्न तीरथ फरस्या उन सिघ ॥ नप करि गया पचमे रवर्ग 1 भया देव मिटिया उपसर्ग ।।३६४५४॥ मारीच मुनी तिहा साथै जोग । फर वंदना सही लोग ।। पाई रिध तप के परसाद । राग झंडे सब बाद ॥३६४६।। महें बाईष परीसा धीर । सा तप साध वलवीर ।। नीता सम सती नहि कोइ । प्रन के भव गरगषर पद होइ ।। ३६४७।। गवण होइ देव अरिहन्त । वांगी झालनी सिवपद संत ॥ इह पूछ बेसिक कर जोडि । सीलवंत नारी भीकर ।।३६४८।। जे नारी उत्सम जल बरी । पालै सील कपमा चढी॥ जिस्य ने दोक कुल की लाज । ते नहीं त सोल का काज ॥३६४६॥ जे विष वे पाल हैं सील । मन गयंद नै राखै कीस ।। मीता किण कारण अधिकाइ । गएरापर होइ मुरुति को जाइ ।। ३६५०।। श्री भगवंत तब कहैं विचार । सीता महासती है नारि॥ विपत्ति मई फिरि कत के संग । अगाया किम ही करी न भंग ||३९५१ रावण हरी परीसह सही। नपणां सत टाल्या यह नहीं ।। ग्यांन अंकुस सों मन गयंद । बैंगग्य भाव सों राख्या बंद ।।३६५२।। या का सत से जीरया राम । मन वांछित सन सीधा काम || जे मन बच पास छह कोइ । ऊंची गति पाय जिव सोइ ।।३६५३।। लोक लाज' सो राख सत्त। निसबल रहे न कनका चित॥ वे क्यों बाकी सरभर करें । जैसा भाव सइसी पति भरें ॥३६५४॥ जैसी करणी तैसी ठाव । पानं घरम ची सील सूहाव ।। पंचबैसि रामथान का ग्राम । नौदर विन रहै तिस टोय ॥३६५५।। अभिमाना वाकी प्रस्तरी । अंसें अगनि पवन त जरी ।। द्विज को सदा देहि वह दुःख । कदे न राख घर में सुख ।।३६५६।। रात दिवस कलह वे करें । बाह्मण देखि भैसी दुख भरे ।। नौदर बाभरण पान्यां अन्न । अभिमानां निकस गई वन्न ।।३६५७॥