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मुमि सभाचंद एवं उनका पमपुराण
जैता विभव तेजा संताप । मूल घोडा बहलो पाताप ।। पौधा चिता कनहीं ना मिट । सोग किये कामा बल घट ।।३६१५॥ कहूं : कला व पुत्र ! काहं होइ मित्र कवहु होइ सत् ।। कबहू भाई क्राबही हूं वहिन । भ्रम जीव मोह के जतन ।।३६१६५ ग्यानी सोग तो इस भांति । इह चिता छोडो दिन रात ।। सुख दुख जाणं एक समान ! हिरदै राखें उत्तम म्यांन ।।३६१७१।
राखं सदा धर्म सौ प्रीत । पुण्य पाप की जागी रीत ॥ चिंता कूछडो तुम मात 1 म्हें सेवा करि हूँ बहुभांति ।।३६१८॥ दे प्रतिबोध मारणे निज गैह । रसोई करवाई बहु नेह ।। विदेहा रावण पटघनी । तार्क संग सहेली घनी ॥३६१६॥ बइठे मिदिर सांति जिणंद । सुमरण कर देव गुरु बंदि ।
रामचन्द्र लभमश नै सिया । विदेहा कु प्रादर बट्ट दीया ||३६२०॥ छोडो सोग करो चिप्त ठांव । हम सेवा करि है बहु भाइ ।।
तुम माता मन राखो चैन । कर छीनती मधुरे न ॥३६२१॥ विभीषग द्वारा राम का स्वागत
तिहां भभोषण प्राये पहुंच । काकं हिये घरम की रुचि ।। दोद कर जोडि वीन खरो। चलो प्रभू भोजन बिध करो ||३६२२।। बाजा बाजे मन प्रानन्द । हस्ती परि चढे रामचन्द्र ।। न्वक्षमन प्रादि भूपती सबै । भभीषण हरखं मन में जबै ॥३६२३।। मेरा धन्य जनम है प्राजि । राम माए इतना दल साज ॥ मो परि फ्रीपा करी जो प्राज ! मेर इहो पाया भोजन काज ॥३६२४ महोछव सब नन में किये । सबही प्रानचा निज हिये । पदमप्रभू निज मंदिर गये । दरसन देखि अधिक सुख भए ||३६२५।। पूजा रचना बारंवार । सकस नरेस करें नमस्कार ॥ रतन जड़ित कंचन के कालस । उत्तम नीर बास तिहां सरस ॥३९२६ उबटणां ल्याए बहुत सुबास 1 भ्रमर न छोरें उनके पास ॥ हेम रतन की चउकी वणी । रतनजोति बिराज पति घणी ॥३६२७ रामचन्द्र लछमन विहां न्हाइ । मदन कर मर्दनयां प्राइ ।। सकल भूपति करि करि सनांन । पुजा कीनी श्री भगवान ।। ३९२८॥