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________________ ३६२ पद्मपुराण दंडक वन देख्या राम । तुम इसके हसे या हमि ॥ उहां ते बाई देखी वह नदी । चारण मुनी आए ये जटी ||४०३६ भोजन दान दिया था उने । जटा पंखी पूरव भव सुने । जटा पंखी इत सेती गह्या । रावरण वां के प्राण कु दह्या ||४०४० || गिर पर्वत देख्या वही । देसमूषरण कुलभूषण सही ॥ उनु का जब उपसर्ग निवार । केवल म्यान लखा णि बार (४०४१ बालखिल्य जिहां था भूप । कल्याण माला पुत्री सुम्वरूप ।। पापम । ५२॥ दशांग नगर बाकर नरेस तिहां प्राय परदेसी भेस ।। उन दीया या हम त आहार वाको दुःख चले थे टार ॥ ४०४३। अयोध्या दर्शन श्राए तिहां प्रजोध्यापुरी। कंचन मंदिर सोभा अति खरी ॥ सीता पूछ इह नगरी कोण | कनकमय दो हैं जिहां भौन ॥ ४०४४ ॥ लंकां है दीसे आगरी । बसें सघन उत्तम जन भरी ।। रामचंद्र बोले समाइ । अजोध्या जनम भूमि यह होइ ॥ ४०४५ || विद्याधरें संवारो न । सा कोई अवर न थांन ॥ श्राए जिहाँ बीस बेहुरे । रिषभदेव सोमें प्रति खरे ||४०४६ ।। उत्तरे भूमि जिनदरस निमित्त । भरत सत्रुधन आए पहुंत ॥ देखी सेन्या घरी विभूति । पुहपक विमा सोभा संजुक्त ||४०४७|| राम लक्ष्मण भरत शत्रुधन मिलन रामचंद्र लखमण के पाउ । भरथ सत्रुघन लाग्मा परि भाउ || उनु लगाया जननं कंठ छूटि गइ मन मोहिली गंठ ॥४०४८ मैंगल डोर लाख पचास । श्रस्य रथ पाइक चहु भास ॥ देखें नारि पुरुष सब लोग । सब नगरी में मिट गया सोग ||४०४३ ॥ पुहपक विमाण परियारू वीर । सो कनक वरण सरीर ॥ मोती माक हीरा लाल । बाले रामचंद्र परि उछाल ।।४०५०।। सीता सती बहु सोमं पास जैसे पूनम ज्योति प्रकास || विधित कू देखि लोग सब कहूँ। चंद्रोदिक सुत इने संग रहें ।। ४०५१५० जब खरदूषण सू भई मार । तब विराधित किया उपगार || दंडक वन ले गए पाताल | रामलखण पहुंचाए हाल ।।४०५२ ।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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