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________________ मुलि सभाचंर एवं उनका पपपुराण देख्या झंगद मुग्रीव हनुमान । इन सुग्रीव सेनां सब ांन ।। रामचन्द्र का कोया माज । राखी रघुवंस की लाज ।।४०५३।। हुनूमान बल महिमा घणी । इसकी बात प्रामें भी सुणीं । भावमंडल जनक का पूत । देव एक कीया यह पद ॥४०५४|| जनमत ही सुर ने इह हरपा । विजयाद्ध' गिरि गिर पड़या ।। पहपावती नै पाल्या याहि । पुन्यवंत पराक्रमी ताहि ॥४०५।। जितने राजा सेना साथ । जैसे इन्द्र देव की प्राथ ॥ बाजंतर बाजे बहु संग । ता सबब सुख पायें अंग ।।४०५६।। गावे गुरिण जन मधुरे वैयन । कर राग होई सुख चैन ।। विरदावली जाचक जन कहै । नगर लोक अकित होइ रहें ।।४०५७।। अपराजिता मवर कैकया । सुप्रभा और सकल सुख भमा । सतखिण मिंदर बहठी जाइ । दरसन देखें पुत्र का प्राइ ।।४०५८१५ निकट पोल माइया निवारण । माता पुत्र मु भया मिलाए ।। चारू माता के पद नए । भरे नयन तव उनके हिये ।।४०५६।। कंठ लगाय परियण भेटिया । नए जनम ए अब प्राइया ।। प्रसुभ कर्म त भया वियोग । पुन्य उदय ते भया संजोग ।।४०६०।। प्ररिल्ल पूनि मिलं कुटुव पौर सुख संपति घणी, वृद्धि होइ परिवार जिती भाब प्रणी ॥ वरो धरम सुप्रीत रिष बह पाइये। मध्य लोक सुख देखि मोक्षपुर जाइये ।।४०६१।। इति श्री पापुराणे श्री रामचन्न समण प्रयोध्या प्रागमन विधानक ७६वां विधान मौपई अयोध्या वैभव दोदकर जोडे श्रेणिक राक्ष । प्रमु जी कथा कहो समझाइ ।। केती विभय राम के भई । केती पृथ्वी साधी नई ।।४०६२।। श्री जिन वाणी गहर गंभीर । सुरणत भाजै प्राणी की पीर ।। गौतम स्वामी ब्यौरा कहूँ । सुशि थेणिक मन निघच गहै ।।४०६३!! कनक कोट चतुःसाला नाम | तीन कोट प्रमोच्या ठाम ॥ एक कोट नगर के फेर । दुजा कोट फिर भीतर घेर ॥४०६४॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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