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एमपुराग
मलनील कुंभकरण भूप । इन्द्रजीत मेघनाद अनूप ।।
लंका सींच गए सन राय । जय जय धुनि सुरणी तहां प्राइ ।। ३८४६।। राम का मुनि के पास जाना
सब मिल समझ्या इम राजान मुनि नै उपज्या केवन ग्यान ।। उतर धूप पयादे चले । ले पूजा सामग्री भले १३८५०।। दे परदिक्षणा करी बंडोत । रघुपति पूछ धरम बहोडि ।। च्यारू गति भाष्या मुनि भेद । सुभ र असुभ करम का खेद ।। ३८५१।। उत्तम किरिया संगी जीव । मध्यम प्रघर मगति की नींव ।। भारत रौद्र ने नीची गांत । सात बिसन नरक को मिति ॥२-५२।। धरम सुकल जीव का प्राधार । भवसागर तें उतर पार ।। इन्द्रजील मेघनाद जोड शेइ हाथ । हमारा भव कहिए मुनिनाथ ॥३८५.३।।
बोले मुनिवर ग्यान विचार | सब जीवों का होइ प्राचार ॥ भूनि द्वारा पूर्व भवों का वर्णन
जंबूदीप भरत छह पंड । कोसंबी नगरी तस मंड ॥ ३८५४।। भवदत्त पंच सेठ के पास । रूप लक्षन गुण अति सुविसाल ।। सम्यक दृष्टि दोऊबीर । सकल जीव की जाणं पीर ।।३ ।। ग्यान समुद्र मुनि प्रागम भया । दोऊ वीर परसन कू गया ।। पूछि क्रिया सरावग जसी । क्रीया करिके कहो सव भती ।।३८५६।। सोभल परम अणुव्रत लिया । मुनि के पास बैंठ तप किया । चंदरस्मि नगरी भूपाल । दरसन कू प्राया ततकाल ।।३५५७१। करि प्रदक्षिणा कहै नमोस्तु । धर्म वृद्धि बोले मुनिरस्तु ।। मंद सेठ ता नगरी मांझ । पूर्ण जी जिन वासर सांझ ।।३८५८।। लक्ष्मी घणी महा परमेप्ट । चले चाल जे सम्यक दृष्टि ।। इन्द्रमुखी वाकी अस्तरी । जिनवाणी निाच मन घरी ॥३८५६।। सेठ चल्या मुनिकर की जात । हय गय वाहन नाना भांति ॥ बहुत लोग पाए, संग सेठ । राजा विभव छिपी ता हैठ ॥३८६७।। पचसम देख अचंभा करें। नंद सेठ इतना बल घरै ।। राजा ते अधिक परताप । भरभ्यां चित्त बिसारी आप ।।३८६१।। मेरे तप का एही निदान । पाउं जनम याके घर पान ।। छोडी देह भया गर्भ आई । इन्द्रमुखी सुख उपज्या काइ ॥३८६२।।