________________
३५०
माकुरास
तेरे तप का यह फल सही हमारा बहरि गुटगानी इन्द्रमुखी मंदोदरी भयो । इह विभूस नव पाई नई ।।३८७८।। सांभलि परम दिगंबर भए । मंदोदरी पश्चतावा किये ।। विधवा भयी पुत्र हवा जती । कुंभकरण है इह भती ॥३८७६।। अब हम दिन कैसे भरें । बारह अनुप्रेष्या चित परै ॥ मंदोदरी संग अठारह हजार । सीस सहस्र राणी परिवार ॥३८८०॥ प्रारजिका सहस्र अहतालि । दिक्षा ले सुमरपा तिहूं लोकपाल ॥ चंद्रनखा भारजिका मृत लिया ! कर तपस्या मन बच कया ॥३८॥ प्रातम ध्यान लगाया जोम | प्रवर विसारधा समला सोग ॥३८-२॥
सुण्यां भवोतर पाछला, मन का मिटया अधमास ।।
राक्षस पंसी प्रसिबली, कर मोक्ष की प्रास ।।३८८३।। इति श्री पापुराणे द्रजीत भेषभार भव निकम विपानक
७२ का विधानक
मरिल राम लक्ष्मण का संका में प्रवेश
रामचंद्र लक्षमण चलि लंका । सकस सेनो की मिट गई संका ।। सेना सफल भई इक ठौर । इन सम बली न दूजा और ॥३८६४।। पचास लाख हाथी की डोर । ह्य गय रथ का नाही बोर ॥ हस्ती पर रामचन्द्र लक्ष्मण । सोहैं जैसे हैम रतन । ३८८५॥ स सुदर्शन आगे खरे । जिसकी ज्योति तेज रवि ह ।। भूपति भूप चले सम संग । सोमैं उनके भले तुरंग ।।३८८६॥ हाट बाजार छाए चउहर्ट । देखें नारि प्रदारी अटै ।। कोई झारि झरोखा तिरी । स्वर्ग लोक की सोभा घरी ॥३५८७।। जर्क सके समाने पणे । जिहां तिहाँ सु बरावर तणे ॥ बिराषित सुग्रीव हनूमान । रथ बैंठा अंगद बलवान 1॥३८८८।। नरपति अवर बहुत ही वणे । नामावली कहां लौं गिणे । रसनष्ट कर रामचन्द्र । दरसन देख्या होइ प्रानंद ।।३८५६।। पहूंचे पोलि लंका के कोट । इनकी छवि भांति भया प्रोट ।। रत्नावली पूछी सीता बात । पहप करण परवत विख्यात ||३८६011