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विभीषण का राम की परामर्श
पद्मपुराण
मभीषण राम लक्षमण सों कहे । तुमारे दल में सुभट न रहे || सुम याते रहियो सावधान । सुग्रीव भामंडल के लाग्या न ॥ ३३२७।। उनकी ल्याऊं लोथ उठाम । जो कोई दरिंण प्राय उपाय || अंगद सोच कर मन मांहि । सुग्रीव भामंडल रहे हाहि ।।३३२६ ।। कुभकरण सों हुवा जुब । बाकी मारग वाही सुध || हनुमान छुटि करि गया। बहु उपाय अंगद ने किया ।। ३३२६ ।। भीषण प्रायो लोध ॐ लेन । इन्द्रजीत मेघनाद कई वन ॥
हम तो जीते हैं सब लोग । हमारी सरभर कू कोने जोग ||३३३० ॥ वावा आए करवा जुध या सनमुख किम लरिये युष ||
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पुरुषां परि किम करिए घाद । अब इहाँ चलें नहीं कहूं दाव ।। ३३३१ ।। समभिग्यांन भाग्याति घरी सुग्रीव लोध इनको देखे पढ़ी ||
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भीषण देखे इन ही की प्राइ । पढे मूर्छा मृतक की नांइ ।।३३३२|| लक्षमण रामचंद्र सू कहै । नल ककु विद्याधर गहे ॥ उनसों जीत सकें नहीं कोई | रावण सूं किरण परि जुख होइ ।। ३३३३०० रामचंद्र बोले सुरण वीर । श्रपणां मन तुम राखो घीर ।। रावण कुमारं ठाव । समर मांहि राखो तुम भाव ।। ३३३४।। देशभूषण कुलभूषण केवली चितागति देव कहीं श्री भली || जय तो हुवंगा काम | तुम चितारो आउंगा उस ही ठॉम ।।३३३५ ।। देवों द्वारा राम को विद्या प्रदान करना
रामचन्द्र में आए देव | नमस्कार करि कोनी सेव ||
रामचन्द्र भाष्यों विरतति । सुर विद्या दीनी बहुभांति ।। ३३३६ ।। विद्या सिष करि कारज किया । दोष रथ विद्या सिव का दिया || छत्र चमर मोतियन का हार चितवत सेन्या होड अपार ||३३३७॥ मनति कारंज सब होइ । दुरजन जीत सकें नहि कोइ ॥ विद्या लई सकल सुख मूल । मन की चिता गई तब मूल || ३३३८५
वहा
जैन धरम सब से बडा, निसवल राखे चित्त ॥
संकट विकट उद्यान में, आइ मिलें बहु मित्त ॥३३३६|| इति श्री पद्मपुराणे विद्यासहाय विधानकं ५५ व विधानक