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पचपुराण
भरत सोधें या सज्या ठोर । ए पहुंचे भूपति की पोर ॥ श्री बजावें गाणे तनि । रघुवंसी कुल का करें बखान ||३४५६ ||
भामंडल का उत्तर
भर भूप सांभली ए बात । तजि निद्रा वस्तर पहिरे गात || छार उभा देख्या तीन । महा सुषड बजावै बीन ।। ३४६० ।। तिनकू पूछें भरा नरेस | तुम हो हो देश ॥ कवर काज प्राये तुम रयण सांधे मोहि सुरगावो वय ।। ३४६९ ।।
३४६२००
भामंडल बोले समझाय | राम लक्ष्मण डंडक वन रहे जाय ॥ सुरजहास खडग तिहां लिया । खरदूषन संयुक जिहां दही रावण सीता हर ले गया । वानर वंसी का मदद मया ॥ हरि मैं लाग्या सकती यांन हरि के हर ले गए पराण ।। ३४६३॥ देहु नीर संजीवन मूल । वो कछु होषं जीवन सूल ॥ इतनी सुरंग कोप्या भरत । सत्रुधन सुगिर क्रोध करत ।। ३४६४ ।। ऐसा क्या रावण बलवान सीता कु ले गया निज थान ॥ मारू राजा कू धब जाई । बाड़ी समय नीसान बजाय || ३४६५ ।। जागे सब नगरी के लोग । भरत कु व्याप्या लक्ष्मण सोग || सुणिवाजत्र जान्यां सर्वे । प्रतिधीरज सुत प्राया त मैं कोई दुरजन यहां याइ । प्राण चढे वाजित्र वजाय ॥ भए एक नरपति घर । भरत सूं कहे उपाय किये व ॥ ३४६७
॥ ३४६६ ॥
जे
तुम लंका पहुंचो राइ | तो इह रयण बीत के जाय | लक्षमण का होवें काज दिसल्या भेजो इरा सार्थ प्राज || ३४६८ ॥ कंकई गई मेषद्रव के गेछ । बिसल्या सुष्पां लक्षमा सुं नेह ॥ रोबे कन्या लग्या सुन वारा या समे पाऊं जाण ।।३४६६।। तो लक्षमरण अब जीवं सही सूरज उदय क जलन नहीं ॥
सब मिल कियो यह विश्वार । भामंडल संग विसल्या तिए वार ॥ ३४७० ॥
१. लक्ष्मरंग
यासु पवन फरस के लाग । उसही घड़ी लक्षमा उठि जाग ॥ श्रसक्ति वारण भाइया आकास । लक्षमण को भई जीने की श्राज ॥ ३४७१ ।।
पवनपुत्र पकडो वह बार बोली विद्या पूचं हनुमांन ॥ असक्ति बारण नैं छोड़े प्राणु । पुण्यवंत सों चली न सयान || ३४७२ ।।