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पपुराण
चौपई
व्रत का रावण के पास पाना
गया व्रत रावण के पास । भाषी सकारन बात परकास ।। भामंडल वचन कह्मा समझाइ । लक्षमण ने तब दिया छुड़ाः ।।३५११।।
वह तो हठ छोई नहीं, तजे न सीता नारि ।। घरम नीत जे सुम करो, बेग विटाबो राडि ।।३५१२।। इति श्री पपपुराणे रावण वृत प्रागमन विधानक
६१ वां विधानक
चौपई रावण द्वारा चत्य वचना
राबरण सुणे दूत के बैन । कर सोच मन भयो कुचंन । कुंभकरणं अने इन्द्रजीत । मेघनाद तीनू भयभीत ॥३५१३॥ वे बंध में भुगत राज ! मेरा हुआ धनां अकान ।। वे ठाडे गलथं हाथ । सोगवंत करि नीचा माथ ।। ३५१४11 बहुत किया उनसों संग्राम । हारि न माने लक्षमण राम ।। मानों अब मुझ कैसी बने । निसर्च वे प्राण मम हनं ।।३५१५।। असी विद्या साधू कोइ । सुरजन सके न सनमुत्र होइ ।। बडी धेर उपज्यो चितांन । सन राई सांतिनाथ जिन थान ।। ३५१६।। मुनिसुव्रत स्वामी की सेव । करू बिब बीसौं जिनदेव ॥ सहस्रकूट कंपन देहुरे । रतन बिब कंचन मों जड़े ||३५१७॥ देश देश चीठी पठवाह । करो चत्याले सगली सज्याइ ।। पर्वत बन नगर प्रने गांम । भए देहुरे उत्तम ठांम 11३५१।। पूजा प्रतिष्ठा करें सब लोग । धरै भाव करि तीनू जोग ।। मंदोदरी आदि प्रठारह सहस : पूर्ज सब त्रिय उत्तम वंस ।।३५१६।। धरम महासम हिए विचार । देव गुरु सास्त्र कर मनुहारि ॥ पूजा वान करें सद नित्त । दया धरम सों लगाया चित्त ॥३५२।। इति भी पपपुराणे शांतिनाथ मुनिसुव्रत त्यालय विधानक