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धनुष लीया रावस नै सादा वा छुटै विद्या वारण || भभीषण मयत सु जुध बांध्या में भूपति बहु बुध ||३७१७।।
दहा
बहुत जुष दोघां दो, कब लग करें चखा ।। सुर असुर गंधसु, सहू जीवने दीये पराए । ३७१८ ।।
इति श्री पद्मपुराणे रावण लक्ष्मरण जुध विधानक ६८ वां विधानक
चौपई
देवताओं द्वारा श्राकाश से युद्ध का अवलोकन करना
पुर। पद्म
दस दिन होते दोन टरं ॥
मरण सुर असुर किनर गंधर्व । देखें जुध सरा सर्व ॥ ३७१६ ॥ वर्षों फूल होई जंकार | इन जस प्रगटचा संसार || चन्द्रवस्त्र
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सत्तरी। टि विमांग बाई सुंदरी ||३७२०|| देखे जुलै तुम हो कवन ध्यान होय ॥ चन्द्रवर्धन राजा की श्रिया । जा सगँ श्रीबाही थी सिया ||३७२१॥ तब हम लक्ष्मण पिता दई । जे लक्षमण जीतें व कही ॥ हमारे मन का कारण होइ । नातर हममें जीवं नहि कोइ ||३७२२ ।।
इतनी सुणि देई यसीग 1 लक्षमण जीवो बहुत वरीस || उंच चित्त लक्षमण वली | यानंदे सब मन में रली || ३७२३ ॥ किनर दीया सिधारथ वांश। वह विद्या पाई विहान || रावण द्वारा खिन्ता करना
रावण मन में करें विचार । किमहि न मानें लक्षमरण हार || ३७२४ | विघत विनायक छोड़े यारण । लक्षमण बाकी करं न कोण सब विद्या छोडी सिंह बार चले वांग ज्यों घनहर बार ।।३७२५।। कारण सकल निर्फल होइ गए । रावण सांच विचारे हिए ।। मेरी विद्या बार अचूक इह विरयां पराक्रम गए सूक ।। ३७२६ । ।
बहुरूपणी विद्या सभालि । कोम चढे रावण भूषाल |
लक्षमण का वकवांण छोडि । एक मुंड रावण का तोडि ।। ३७२७॥