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मुनि सभाचंच एवं उनका पयपुराण
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अनेक रूप में रावण का लामा
टूटघा एक भया होड़ दस प्रोरि । वीसत दूगी मुजा सिंह योर ।। सुरजहास लक्षमण कर या । कार ड रकत लिदा नद्या ।।३७२८।। ज्यों ज्यों का त्यौं त्यों बधैं । सहस्र मुड सुज दूरगां वद ।। ज्यों ज्यों काटे भूजा अरु मूड । लाख सीस भुज दोई लख दंड ॥३७२६।। मकल मुजा प्रायुध को लिये | मार मार सबद मुस्ख किये ॥ जिहाँ काटे तिहां चले रकत । नंदी बहे उवै सह अंत ॥३७६३१५ परवत मुड मुजा का भया । पकी लोथ पग जाई : दिया । सोना नंदी बहै तिहां लोथ । हाथी घोडे रथ सूर वहोत ।।३७३१।। जैसे मगरमच चल तिरै । असे लोथ रकस में फिरें ।। जेता रण अशा दोउ सेन । तिनका कहि न सके कोढ़ बैन ।॥३७३२॥ रावण की सब सुष वीसरी । लक्षमण मुजा की तब हरी।।
रावण द्वारा सकघलाना
रायण तब संभाल्या चक्र । सुदर्शन नाम भयानक वक्र ॥३७३३।। सहस्र देवता सेवा करें। पक सुदर्शन वह गुण धरं ।। रावण के कर माया सिंह घड़ी । रवि की ज्योति सब उन हरी ।।३३३४।। विमक सकल' भाज्या रण खोग | कोण कोण का होय वियोग ॥ जिहां चक्र चले सब दल । कोई न बर्च फिर जीक्त मिले ।।३७३५।। चक्र तेज त सह जन उरं । वा सनमुख कोई न उबर ।। रामचंद्र लक्षमण सुग्रीव । भामंडल भमीषण नींव ॥३७३६। हनुमान सुभट थिर भए । कटु संक न मान हीये ।। बोल रामचंद सक्षम।। रे बरांक सोच क्या मना ।।३७३७॥ छोडि चक्र कह ई टूक । बजावत सूहनू' अचूक ।। कोप्या रावन चक्र फिराह । छुटया सुदर्शन मुख जाइ ।।३७३८॥ समचन्द्र कर वजावत । लक्षमण कर समुद्रावरत ।। मभीषण संभाल्या त्रिसूल । पक फेर गमावं मूल ।।३७३६॥ हनुमान जड़ाई गदा । सुग्रीव बन संभाल्या तदा ।। चक्र नै छोडि कर चकचूर । पैसा मता कर सब सूर ।१३७४०॥ चन्द्ररस्म पर भूपति घणे । छलबल निपुण राम संग बणे ॥ सुदर्शन चक्र लक्षमण लिंग जाई । तीन प्रदक्षिणा दीनी आई ।।३७४१॥