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तुम हो जती दिगंबर भेस । समझयो ग्यांन दया उपदेस || तब मुनिबर कुं उपजी दयरसिकू छोडि बनवास लिया ।। ३६६९ ।। मूलां ने दीजिये बताय । ग्यांनी मूरख नहीं हि ॥ सीता देहु ज्यु मिर्ट राष्ट्र मानुं वचन ज्युस घाड आग भए नारायण सात । प्रतिनारायण सारे इरा भांत ।। प्रथम त्रिविष्ठ बिजई बलभद्र । अवग्र मारे कर चक्र ।। ३६६४ ।। सुप्रतिष्ठ प्रचल दुजा अवतार | तारक मार किया मंधार । स्वयंभू धर्म तीजे भए । डन उन हयां समए १३६६५ ।। पुरुषोत्तम सुप्रभु चौथो बली । निसृरंभ कीत्तिण ग्रीवा दली || पुरुषसिंह सुदरसन पंचम मेरकुमार जिम मंदिर में ।। ३६६६ ।। पुंडरीक नंद भए छटा मदसूदन ग़ारचा चक्र पडें ॥ दत्त नामात्र नारायण सातए । बल्लभ को मारया बातम् ।।३६६७।।
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अब है यह अष्टम अवतार तुम प्रतिनारायगा हैं इस बार || नारायण का है इसे नियोग । प्रतिनारायण के कम करें विजोग ।। ३६६८।। तातें मुझे व्यापं हैं इही। तुम लक्ष्मणा मारंगा सही ॥ तानिवऊं बारबार । श्रव जे सके कलह कु टारि ।.३६६६|| अकारथ क्यूं दीजिये जीव । अब कछु करो घरम की नींव ।। अणुव्रत पालो घर माहि । सुख सों बैठा सीतल ह ।। ३६७० ।। छह दरसन विश्वस्य द्यो दान | सास्त्र सुउ नित व्याख्यान ॥ श्रथ तेरह विष चारित्र जीतो । पंच इन्द्री सत्रु ।। ३६७९ ।। श्राठ कर्म जीतो तुम ईस । प्रकृति ते रहे एकमो घडतालीस || भव जल तिर जाओ सित्र मध्य अजर अमर लिहाँ पुरण विद्ध ।। ३६७२।।
उत्तम ग्यानी करें न पाय डायो कुभकरण इंद्रजीत
रावण का उत्तर
पद्मपुराण
सीता देहु राम कु श्राप ॥ । मेघनाद छूट ह चैत ।। ३६७३||
रावण सुगि इम उत्तर दे । तुम ए बचन काहे कहे ॥ तोरी कुख उपजे बलवंत । तु किम हो है भयवन्त || ३६७४ ।। में तो प्रतिनारायण नहीं । कोण नारायण है इस मही ॥
इंद्र भूष सम अवर न कोई । वाकु बस कोको भ्रम खोइ || ३६७५||
ऐसे हैं ये कहा कि जिन की तुम मानों हो धाक 1 मरण सु कातर हो
सो उरे । सरस होइ सो बैगा मरं ।। ३६७॥