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मुनि सभा एवं उनका पमपुराण
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जे बाँबी में डारे हाथ । निसर्च हुवं प्राण का घात ॥ समझि बूझि भया प्रग्यान । परनारी हरि करिते प्रनि ।।३६४८।। जाइ नरक भुगतै चिरकाल । छेदन भेदन दुख का साल ॥ ताती फुतली ल्याव अंग । ए फल लगे सील के भंग ॥३६४६।। जे कुलीन ते पाल सील । तज सील जे कूल कुवैन । सीता मो कू मांगी देड । तुम इह मेरा वचन करेड् । १३६५।। जे तुम चाहो हो अप्ति रूप । मैं हूँ सयतें महा स्वरूप ।। जंसा कहो तसा करू' भेष । शैक्रिया रूप कर असेस ।।३६५१।।
सोता नै यो मेरे साथ । पहुंचाऊ जईने रधुनाथ ।। रावण का क्रोषित होना
सी सुरिण कोप्या दशशीस 1 भह चडाई नयनही बीस ।।३६५२ । तू मेरा अग्रे सूमाह । रावए तब इण विध रिसाह॥ परपरुषां की प्रस्तुति कर । मेरा भय जिव मैं न धरै ।।३६५३।।
तेर कहा रामसू काम । तो कजात हे उनकी ठाम ।। मन्बोदरी का पुनः निवेदन
मंदोदरी कह फिर बैन । प्रीतम तुम राखो चित जन ।।३६५४।। इतना गुण सीता में कहा । ता कारण इतना हठ गया ।। यह तो कोई इच्छ नाहि । अटल सील करते है ताहि ।।३६५५।। उत्तम मुल जनक की धिया । महा सती राम की त्रिया ॥ जे कुल हान तजे ते सील । विभवारी कुल छ नींव ।।३६५६।। बिना कारिज मरि है ए जीव । ए सब पाप पड़ेंगे नव ग्रीव ॥ पहिला तजं आपनी वेढ् । तव परवारास्यु किसा सनेह ॥३६५७।। जिनकी तुमने सीता हरी । तोहि मारगे इस पड़ी ॥ सीख दंत मानु तुम बुरा । तुम मरने कारन ही धरा ।।५६५८।। विसन कुमार बिक्रिया रिख । टारा दुख बाका पुनि सिप ॥ मलि पं मांगी पंड जु तीन । तब बोल्या वाँभण मति हीन ।।३६५६।। लोटा भाग योभण का सही । तीन पैडि ही मांगी मही ।। इतनी सुरण तव धाई देह । मानषोत्तर पर्यंत पग देह ॥३६६०॥ दूजा चरण सुदर्शन मेरु । तीजा पग • रमा हेर ।। तीजा वरण बलि के होए । देवा ने संबोष सर दिये ।।१६६१॥