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मुनि सभाचंच एवं उनका पपपुराण अपशकुन होना
रावल पावसाला चल्यो । तिहाँ सुगन खोट सहुँ मिल्या ।।
छ सो छट पडघा भूमि । टूटी धूरि पाया रथ झूमि ॥ ३६२०।। प्रागै होह निकल्या मांजार । स्वान कान झारधा तिन बार।
खोट सुगन रावण को भए । मंदोदरी सो निज हिये 11३६२१।। मन्दोदरी को चिन्ता
मंदोदरी पूर्छ निज मंतरीं । जे रायण टालं असुभ घटी।।
मम झावो सुम मेरी बात । ज्यौं नि जावं गही घात ||३६१२।। मन्त्री का उत्तर
घोले मंत्री माता सृणु । रावण सम में, मबही ते घणु ।। वेदपुराण कर व्याख्यान । वा सम सुघट न दूजो जारस ।। ३६२३।। हम इव हैं तो मान चुरा । हमारे आहे काज कहा सरा ।। जो तुम ना समझावो प्राप । तोइ हमन को मिद सताप 11२६२४।।
मंत्री पास सुरणे उपदेस | गई जहां दसकंप नरेस ।। मन्दोदरी द्वारा रावण को समझाना
हंस गमन सोहै मंदोदरी । बहत संग सम्पीयां खरी ॥३६२५।। जमे गम ममुद्र कमिली 1 मंदोदरी इम पति पं चली ।। जैसे सब कालिदरी । तिम वे संग सोहे अस्तरी ॥३६२६५ जैसे इन्द्र इन्द्राणी के हेन । अइसी प्रीत इनांको होत ।। प्रावत देखी रावण निज नारि । बांध था कटिस्युतरवार ।। ३६२७॥ रबोल भूपति कारण कवन | काहे कसूम कोया गवन ।। मंदोदरी बिनचे कर जोडि । मोकू देव मुहाग वहोड ॥३६३८।। प्रमुजी मेरा मानों बयन । करो राज घर बेटा चइन ।। रामचंद्र हैं सूर्य समान । तुम हो सब तारा समान ॥३६२६।। कैसे लग भांन कडेल । बालक ज्यों करता होइ खेल ।। वह हैं तीन लोक के ईस । उनसौ करि न सके कोई गैस ॥३३३३।। सीतां उनकी देहु पठाइ । निरभय गज करो इण ठाइ ।। परनारी है दुष की खांन । तासौं होइ परम की हानि ॥३२३१।। कुल आय होइ जाहि हैं प्रान । श्रमी समझि विचार तु ग्यान ।। सोक नदी अति ही गभीर । चिसा लह ज्यु माग तीर ।।३६३२।।