________________
मुनि समाबंद एवं उनका पद्मपुराण
सव त्रिया तरी करि मनुहार । पहर श्राभूषण किये श्रृंगार ॥ चल्या मेह बाजा बजवाइ। सुवरण चौका लिया मंगाइ ।। २५९५ ।। सन तेल फुलेल जंबटरणा प्रोन ||
उता
1
कंचन कलस गंगा का नीर 1 करई सेवा राणी तीर ।। ३५६६ ॥
सांतिनाथ की पूजा करी । भ्रष्ट द्रव्य सामग्री घरी
बहूरि प्राय लीया श्राहार । पुष्पक विमारण परि हुवा असवार ।। ३५६७॥
I
बहुरूपणी का श्रम देखूं बल । मैसी है या विद्या घटल ||
जितनी भी विद्या की सईन कंपी धरती गिरि थरहरे ।
रावण के मंत्रियों द्वारा पुनः निवेदन
सब गुण देखे श्रपणे नयन || ३५६८ ॥ रामचंद्र का दल
परे ।।
रावण के बोलें मंतरी । तुम पाई विद्या गुरण भरी ।। ३५६६।। रामचंद्र लक्षमण हैं बसी सीता देहु ज्यों हो रली ||
रामल द्वारा पश्चाताप
मोहि भई प्राण्यां की लाज । मोहि नहीं सीता स्युं काज || ३६००।।
१२६
जई फेरू तो मोहि लगे कलंक सब कोई कहे इन मानी संक || मोकू उपजी बुधि कुषि । तुझि हरि लाया मुली सुधि ।। ३६०१ ।। मेरी धाव थी जो इम ही लिखी। बैठि विमारण देख भू सखी | पुष्पक विमान सीता ठरिंग दिखलाया समता संसार ।। ३६०२ ॥
far for faग है मेरी बुधि । कछु नही करी घरम की सुधि ।।३६०३ । । परनारी मैं काहे हरी । अपनी कीरत कीनी बुरी ॥
जो मैं जटा पंखी के पास छोडि भाषता इंटक बनवास ।। ३६०४ ।।
भभी समझा या मोहि । मैं परि कीया प्रति छोह ।। वाके मारण की मति करी । भाई बीछड गय तिन घडी ॥ ३६०५ ॥ जे मैं मानता उस तणां वचन । तो किम होती ऐसी कठिन ।। कुंभकर्ण मर्ने इन्द्रजीत । मेघनाद तीनुं भयभीत ।। ३६०६ । । पडे बंदि मां सब जाइ। ए दुख मो सह्यो न जाइ ॥ उत्तम कुल को कालम स्याइ । सीता कु प्रांणी बुराइ || ३६०७११ सकल लोक निसदिन निा करें। जो सुरिश है सो कहि है बुरें ॥ परनारी है जिसा भुवंग । भव भव दुख होवें जिय संग ।। ३६०८ ।।