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मुनि अभाचंद एवं उनका पमपुराण
लाल मृदंग बजं गुडगुणी । कर नृत्य पातर रूबडी ।। जिहां जिहां जिन के देहुरे । पूजा पद पंडित सहु खरे ।।३५७०।। बाजा बजै सुहावरण रूम । तिही कामिनी नारि अनूप ।। अगद कूदेखें तिरण बार । धन्य नारि जिसका यह भरतार ॥३५७१।। कोई कह इह जननी धन्य । जिसकी कूख भया उत्पन्न ।। कोई नई बहन है धन्य । जिसका है यह बीर रवन्य ॥३५.७२।। सब मिलि नारि सराहैं रूप । नमस्कार करि फिरियो मुप ।। लंका के गढ़ किया प्रवेश । चंद्रकांति मरिण मिदिर भेस ॥३५७३॥ मंदिर का बहुतं यिसतार । जो मल सो लहै न द्वार । इन्द्र नील मगि मंदिर और । रतन सफोटिक मिदिर तिण ठौर ।।३५७४।। श्री भगवंत का है तिहां सथांन । अंगद नप तिहां पहूंच्या मान ।। नमस्कार करि करी डंडोत । प्रस्तुति जिन की पढ़ी बहात ।।३५७५।। तीन प्रदक्षिणा दई नरेद्र | सांतिनाथ पूजिया जिनेन्द्र । रसनभ त्याला १ . त घामा भगं ॥३५७६।।
बेदी माही धनी अनूप । छत्री सो में अधिक सरूप ॥ ध्यानारून राषण को देखना
जिहां रावण था पानारुद । अंगद नै तब पाया ढूढ ॥३५७७।। रे पापी पाखंडी नीच । धरया ध्यान कपट मन बीघ । अंसा परपंच करै हैं झूठ । गही मौन जैसा है ऊंट ।।३५७८।। बिन विवेक देही को दहै । सत्य शील का भेद न लहै ।। रावण चित्त हुलावै नहीं। करत बाप्प अंगद नै गही ॥३५७६।। पुहप पठाय मारे मुंह माथ । पकडिझझोड़े दोन हाथ ॥ मंदोदरी आदि सकल रणबास । बोटी पकड़ि पानी उन पास ।।३५८०।। करं आलिंगन मोडे बांह । रावण मूह ते बोल नांह ।। सगली सखी पुकारे घणी। कर कहा अब अंसी बरणी ।।३५८१।। तुम वठा हमको दुख होइ । तुमकों बुरा कहे सप कोड । रावण का तिहां चित्त न टरै । तब नगद मुख से उच्च ।।३५८२।। रे रावण से सीता हरी । हूं ले जाऊं मंदोदरी ॥ मैं तू बली तो लेहु छुडाम । दासी करि हूं पिता की जाय ।।३५८३।। मैं चाल्या जे तोहि दिखलाइ । मति कहियो से पया चुराय ।। रावण मुख ते कछुवन कहै । विद्या का ध्यान जीष में रहै ।। ३५८ ।।