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पपपुराण
बंठि सभा वह मंत्री बुलाई । पूर्छ मासा लंका जाइ ।। मृगांक मंत्री बीनती करें । कई सांच प्रभु हिरदै वरं ॥३४८४।। स्पंघा के रथ श्री रामचन्द्र । ते जाणं विद्या के बंद ।। गरड वाहन लामरण कुमार । विषल्या जाणे विद्या सार ॥३४५५॥ जे तुम चाहो भगत्यां राज । राक्षस बंसी रास्त्रो लाज ।। सीता ले मिलो राम के संग । जो न होवई राज का मंग ।।३४८६॥
सदा रहै ज्यों ऊन सौं प्रीत । छूट कुभकरणं इन्द्रजीत ।। राबरण का मन्तव्य
रावण कह सुण मंतरी । भेज्यी दूत उनप इन घरी ॥३४८७।। रूपवंत हुवे चतुर सुजाण । निरभय बचा सुगा जाम ।। छुडावो कुभकर्ण इन्द्रजीत । हम उनसौं करें मंत्र को शैत ।।३४८||
मैं नहीं वा करें घमसान । चाल्या दूत सुघड सुजांन । रावण के व्रत का राम के पास जामा
सुग्ण उपदेस राम पं गया । सेन्या देखि विधार इह किया ।।३४८६।। इन है सेम्यां प्रति छ । राषण के है सब कुछ। जाह पौलि ठाडा भया दूत । रामचंद्र सेन्यां संजूत ।।३४६०॥ पहुंच्या त्वरति बुलाई बसीठ । स्वामी काज को देइ न पीठ ।। रामचंद्र का दर्शन पाह । नमस्कार करि ऊभा जाइ ॥३४६१॥ विनती करू सुण हो रघुनाथ । कुभकर्ण इन्द्रजीत छो भी साथ ।। रावण सु राखो सनमंध । इत उत तं चूक इह घंध ।।३४६२॥
प्रजा बचै सब का दुख जाय । छोडा क्रोध धर्म के भाय ।। राम का उत्तर
रामचंद्र वोल तिण बार । जो सीता भेजै हम द्वार ॥३४६३।।
भाई पुत्र उसका देउ छोडि। जब वह जीया पाहै बहोडि ।। रावण के व्रत का पुनः निवेदन
दूत कहै सांभलि राजान । रावण सम कोई नहीं प्रान ॥३४६४।। उन जीत्या है तीन पंड । सव भूपन प लिया हे दंड ।। जीत्या इन्द्र दो दिगपाल । राक्षस बंसी बली भूपाल ।।३४६५॥ जं तुम जीया चाहो राम । तो सीत का मति लेह नाम ॥ छोडो कुंभकर्ण इन्द्रजीत । तो तुमसौं छूट नहीं प्रीत ॥३४६६।।