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पचपुराए
चंद्रप्रति तब बिनती करै । मैं हूं वंद्य कारज तुम सरै ।। भामंडल इतनी सणि वात 1 वाकी ले चाल्यो संघात ।।३४०४|| खेडा माहि रोक नहीं कोइ । इनका मन बांछित जो होइ ।। रघुपति को उन करि डंडोत । नमस्कार फिर किया बहुत ।।३४२५।। रामचंद्र पू॰ तिरण बार । इहै है कोण तुम लार ।। कहें ए वैद्य गुणवंत । लक्षमण जतन करें बहुभंत ।। ३४०६।।
परदेसी कूपू राम । तू कितत्तै पाये इण झाम ।। ध की जीवन कहानी
कहै विदेसी अपनू भेद । विजयारघ तहां विद्या भेस ।।३४०७।। गीतपुर नगर समेइल राइ । सुप्रभा राणी रूप को काम । ताके पुत्र चन्द्रप्रति भया । बल पौरिष मो मो नया ।। ३३०८।। बेसंधर का सहस्रबीयं पुत्र । चंद्रबारण मोरिया तुरंत ।। में पाया जाय अजोध्या मांहि । तिहां भर्थ भूप पाए सांझ ।। ३४०६।। मोकू देखि दया उन करी । गंधोदिक छडक्या उणा घडी ।। उत्तरमा दोष मोकू भया चेत । उनां परम सुकान हेत ।। ३४१०॥ मैं उटि भरत सू विनती करी । इस विद्या हैगी गुरण भरी ।। इसका मोहि सुगावो भेद । भरत भूप भाष्यो सब भेद ॥३४११॥ महिन्द्र उदै रावरा मेष भूप । गुणसाला राणी बह रूप ।।
वा गर्भ बिसल्या भई । रूप लक्षण सोभे गुण मई ।।३४१२।। स्या को कथा
जब वह कन्या कर सनान । वह जल पहुं रोमी धान ॥ तिनका रोग सबही मिट जाई । सकति बारा का दोष बिलाइ ।।३४१३॥ अजोध्या माहि रोगी थे घणे । वाही जल तें नीके कणें ।। तब से प्रगट भया वह नीर । गई सकल रोगी की पीर ॥३४१४।। पूछ भरथ विसल्या परजाइ । बाका भब भाषो समझाय ।। कवण पुन्य त पाई सिघ । जिसके चरणोदक इह विष ॥३४१५।। सकल रोग कू परिहा कर । असे गुण भरणोदक घर ।। नोले मुनिवर ग्यान विचार । क्षेत्र विदेह स्वर्ग अनुहारि ॥३४१६।। पुंडरीकनी सीमंधर जिनंद । चक्रवत्ति त्रिभुवम पानंद । चक्रधरा वाकै पटधनी । रुपलक्षण गुण सोम खरी ॥३४१७॥