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मुनि सभाचंद एवं उनका पयपुराण
चौपई राम रावण द्वारा युद्ध की तैयारी
रामचन्द्र लक्षमण इह चित । पहरा देव बस्त्र पवित्र ।। चंद्रहास बांधा तरवार । प्रायुष सगले लिये संभार ॥३३४०।। व सावर्त समंदरावर्त । लिये धनुष रणजीत के करत ॥ सिंघरथ ऊपर चढे रामचन्द्र । गरुड वाहन लक्ष्मण वृद ॥३३४१३। सेन्यो चारू साथ जो लई । रिव की किरण उभिल भई ।। कांपे तरवर कांपी मही। कंपे मिरिवर जलहर सही ॥३३४२।। रामचन्द्र कोप्या भगवान । कोण कोण का जासै परान ।। रामचन्द्र सुमरिया जिणंद । दोनू सोहै निम सूरज चंद ।। ३३४३।। प्राकाश गामिनी विद्या संभार । रथ सु फरस चली तिबार ।। वहै पवन लागे तन व्याल । उतरघो विष चेत्या मपाल ।।३३४४।। नाग फास के टूटे बंध । भया उजाला भाज्यो अंध ।। जेते पड़े थे मूविंत । बोल उठे नाम भगवंत ॥३३४५।। राम लश्नमण का दर्शन पाम । मन पाश्चयं भये सब राय ।।
राम लक्ष्मण थे भूमिगोपरी । किरण विष इनने विद्या फुरी ||३३४६।। विद्या द्वारा मूलितों की मूर्धा दूर करना
माकाश गामिपी इन ही ने किया । जीव दान सब ही कू' दिया ॥ उठे सकरख लोग मुवि पड़े । विद्या लाभ सुरिण रह जे घणे ।।३३४७॥ सुग्रीव भामंडल पूछ सहुबात । सितागति सौं सनबंध किस भात ।। रामचंद्र लक्षमण समझाय । देसभूषण कुलभूषण मुनिराम ॥३६४८।। बंसलगिरि उपरि घरचा प्रातमध्यांन । उनक' उपसर्ग भयो तिरण थान ।। हम उनका उपसर्ग निवार । केवलग्यान उपज्या तिरण चार ॥३३४६॥ पाये सुरपति पूजा करी । चिंतागति मिश्र भयो तिण घरी ।। दोन्यु मुनि का था इह तात । तपकरि भया देव की जात ३३५०।। या सम अवर नहीं सुर कोइ । इन्द्र समान चितागति होय ।। इन म्हारी स्तुति करी पक्षी । जैसी बात वासय भरणी ।।३३५१।। है सेबग थारो रघुपति । जब चितवो तब प्रातित तब तुम मूवित होय पढे । पितागति ने चित मध्ये घरे ॥३३५२।।