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प्रभूषण पहरे निज अंग । सस्त्र बांधि चाल्या नृप संग || रक्षा की ठांभ खडा दोउं श्राय ।
पद्मपुरा
मारीच के सनमुख भये जाय ||३२|
घोडा से घोड़ा तब लड़ें। मंगल सों मंगल प्रति भिड़े |
रथ को रथ पर दिया हिया पेल से भिडं ज्यों खेलत द्वी मल्ल ३३६
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दो षां वर विद्या बारा । गोला गोली करें घमसान || होइ । पीछा पाव न हटिहै कोई ||३३०० ॥
मार खडग टूक
तीसरे दिन का युद्ध
मारं गदा व के सम्मान । सेतपराजा भुझे बलवान ।। सिंह जी कोष करि लडे । बहुत लोग दोऊ भी करें ।। ३३०१ ।। प्रथम राय शुभ के पडा । उई मद संसत्र अघन दल जुडा ।। भई मार इतते टलें न सूर क्रोध करि भट लड़ें बल पूर ।। ३३०२ ।। सकनंदन पाप ध करें । पापनंदन झुझि कर पई ॥ रामचंद्र के भुझे लोग रवि श्रा लोप्पा करि के सोग ||३३०३ ।। भई यस मिटियो संग्राम सघलां ही पायो विश्राम ||
भयो दिवस उम्यो जग भनि । दुषां जुटधा सूरमा भान ।। ३३०४ ॥ वर्षा बाप पडे चहुं ओर जैसे पई मेह की डोर ॥
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जुडा भूप छोडे जुरवनि । विसोलदूत के हरे पनि ॥ ३३०५ ।। वानर बंसी प्रति भयभीत | राक्षस बंसी की भई जीत ।। सुग्रीव आयो गज पलांग । श्रर्ज करें बाद हनुमांन ॥ ३३०६ ॥ तुम भव ही बैठो हरण ठाम सक्षस वंस ऊपरि दोडूं मैं जाम || हनुमान वाया केही राक्षस बंसी की सुध बीसरी ।।३३०७ ।। भाजें जिम मंगल मदमयवंत । सुर्खे सब केहरि गरजंत ||
तब कोप्या रावण बलवान । अवर धरणे विनती करे ांन ।। ३३०८ ।।
तुम ग्रागे सारं हम कॉम हमारा देखो तुम संग्राम ॥ धाए तिहां भूपती धरणे । पड़ी मार दुरजन बहु हणे ||३३०६ || हनुमान सबै गदा संभारि । बणां भूपति मारे बारि ॥
रावण की सेना चली भाग । तबै उसके हिरदे दोइ नाग ।। ३३१०॥
कुभकरण अनै संबुकुमार । चन्द्ररु सार्दूल दल भार ॥ जंबुमाली सन उदरी सुत बाल महोदर तीन पुत्र सुबिसाल ।। ३३११