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________________ ३०६ प्रभूषण पहरे निज अंग । सस्त्र बांधि चाल्या नृप संग || रक्षा की ठांभ खडा दोउं श्राय । पद्मपुरा मारीच के सनमुख भये जाय ||३२| घोडा से घोड़ा तब लड़ें। मंगल सों मंगल प्रति भिड़े | रथ को रथ पर दिया हिया पेल से भिडं ज्यों खेलत द्वी मल्ल ३३६ 1 दो षां वर विद्या बारा । गोला गोली करें घमसान || होइ । पीछा पाव न हटिहै कोई ||३३०० ॥ मार खडग टूक तीसरे दिन का युद्ध मारं गदा व के सम्मान । सेतपराजा भुझे बलवान ।। सिंह जी कोष करि लडे । बहुत लोग दोऊ भी करें ।। ३३०१ ।। प्रथम राय शुभ के पडा । उई मद संसत्र अघन दल जुडा ।। भई मार इतते टलें न सूर क्रोध करि भट लड़ें बल पूर ।। ३३०२ ।। सकनंदन पाप ध करें । पापनंदन झुझि कर पई ॥ रामचंद्र के भुझे लोग रवि श्रा लोप्पा करि के सोग ||३३०३ ।। भई यस मिटियो संग्राम सघलां ही पायो विश्राम || भयो दिवस उम्यो जग भनि । दुषां जुटधा सूरमा भान ।। ३३०४ ॥ वर्षा बाप पडे चहुं ओर जैसे पई मेह की डोर ॥ I जुडा भूप छोडे जुरवनि । विसोलदूत के हरे पनि ॥ ३३०५ ।। वानर बंसी प्रति भयभीत | राक्षस बंसी की भई जीत ।। सुग्रीव आयो गज पलांग । श्रर्ज करें बाद हनुमांन ॥ ३३०६ ॥ तुम भव ही बैठो हरण ठाम सक्षस वंस ऊपरि दोडूं मैं जाम || हनुमान वाया केही राक्षस बंसी की सुध बीसरी ।।३३०७ ।। भाजें जिम मंगल मदमयवंत । सुर्खे सब केहरि गरजंत || तब कोप्या रावण बलवान । अवर धरणे विनती करे ांन ।। ३३०८ ।। तुम ग्रागे सारं हम कॉम हमारा देखो तुम संग्राम ॥ धाए तिहां भूपती धरणे । पड़ी मार दुरजन बहु हणे ||३३०६ || हनुमान सबै गदा संभारि । बणां भूपति मारे बारि ॥ रावण की सेना चली भाग । तबै उसके हिरदे दोइ नाग ।। ३३१०॥ कुभकरण अनै संबुकुमार । चन्द्ररु सार्दूल दल भार ॥ जंबुमाली सन उदरी सुत बाल महोदर तीन पुत्र सुबिसाल ।। ३३११
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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