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मुनि सभाबंद एवं उनका पपपुराण
धाय पडे सब एक बार । जंबूमाली काषक वान सों मार ।। तन्त्र झुझ राबण का पूत । कुभकरण कोपिया बहुत ।।३३१२॥ भूर्या बाण कुभकर्ण छोडिया । सोइ गया सन्नु काया मरण ।। देखें तबै तिहां नल नील । धाय पडघा ज्यों उतर धील १।३३१३।। मार गया तीर तरवार । भाम्या कुंभकरण तिण मार ॥ जीते रामचंद्र के बली । नस पर नील सह सेना दली ।।३३१४।। राबरण चद्धि दोडियो नरेन्द्र । इंद्रजीत बोले बल घुन्छ ।। हमा प्रागन्या कीजे तात । देखो नुष करू' किहं भांति ॥३३१५।। मनवांछित ह कारज करू । दुरजन दल जम मंदिर पर।
लोकसार हस्ती सुपलान । इन्द्रजीत दोडे बलवान ।।३३१६॥ मेघनाव जंबूमाली पले । अस्त्रास्त्र बहु कर लिये भले ।।
भकरण प्रवर हनुमंत । सृग्रीव इन्द्रजीत सामंत ||३३१७॥ मेघाहन भामंडल लई । बनकरण विराधीत दोउ भिडें । ज्यों धमहर वरष घनघोर । छुट सर गोली चिहूं प्रोर ॥३३१८।। बरछी गदा चक्रों की मार । बामें लोह उड अंगार ॥ गज सेती गज टक्कर लेह । घोडा सों घोडा मरझेह ।।३३१६H पयदल रथ तिहाँ माझे घणे । मनमें हरष धरि जोधा घणे ॥ इन्द्रमीत राय सुग्रीव कह भाइ ! हमारा देस परगना खाइ ३३२०॥ हमारा हर तें धरा न चित्त । समझ नहीं प्रापणा वित्त ।। देखि तोहि लगाउं हाथ । दूरि करौं देही से मांथ ।।३३२१॥ सुग्रीव छोडे विद्या यांस 1 राक्षस दल कोमा पलहाण ॥ इन्द्रजीत छोट्या मेघवारा । वरष मेष मुल्या अवसांग ॥३३२२।। पई बीजली परलय कर । पबन वान सुग्रीव संभरं ।। उ. पटल राक्षस दल उई । रावण सुत क्रोष मन वढं ।।३३२३॥ अंधकार बाण कू छोटि ! भया अंधेरा सुग्रीव की वोड । नागपासनी विद्या संभार । लपटे सर्प मुरछा तिह बार ३३२४॥ सुग्रीव की नागपास सौं बांधि । मेघनाद एही विष सोधि ॥ भामंडल कुंण ही भौति । कर मूरछा सांस न गात ३३२।। कुंभकरण पकड़े हणवंत । दोनू भुजा भरि घाव दंत ।। जंद फंद भल्यो कृणुमान । वा समये ना छुटे प्रान ॥३३२६।।