________________
मुनि समाचंच एवं उनका पपपुराण
३०१
कोइक कहे रावण दल घर । रामचंद्र संग थोडा जना ।। राक्षस बंसी है बलवंत । वानर वंसी किम होह करंत ॥३२३४।। जे सध्यस वानर कु भई 1 अंसे लोक मापस में बक ।। कोई कहै बली हनुमान । लंका कूढाही उन भनि ।।३२३५।। सब लोगन कू दीनी मार | बन उपवन फर दिया उजार ॥ सनमुग्य कोई बुध न करि सके । इसही विध राष्यस संसकं ॥३२३६।। कोई कहै रावन अति बली । कुभकरण की कीरत भली ।। इन्द्रजीत मेगा ननदल । नप
पौंग ३010 रामचंद्र जीत किस भात । रावण का बल कहा न जात ॥ कोई कहै ए दोन्यू वीर । दंडक धन में कोई न तीर ।।३२३८॥ खरदूषण सु' लक्षमण लामा । सेन्यां सूधी परलय करना । रामचन्द्र पे बचावर्त । लक्षमण कनं समुद्रावतं ॥३२३६।। रामचन्द्र लखमण सु पुनीत । रावण करी पाप की रीत ।। जिहां परम तिहां व जय । रावण का होगा क्षय ।।३२४०।। ऐसे आपस में करें सोच । अन्य वस्तु की भूली रूच ।। कोण मरं कोण जीवत बचे । को अर्थ बात मैं पचं ॥३२४१।। घरम मार्ग क्रिया सुध मूल । रात दिवस मन किया अडोल ॥ जे कोई छोडि जाइ संग्राम । दिक्षा ले करि प्रातम काम ॥३२४२।। तो होब लोक में अपलोक । कातर कहैं तानू सब लोक ।। भैसी प्राणि धणी है कठिन । तांकों का न होवे जतन ।।३२४३।। इह भव सागर में जीव । भ्रमैं च्यार गति गाढी नींव ॥ धरम दया से उत्तर पार । जो कोई सह संयम का भार ॥३२४४॥
भारत रौद्र निवार करि, धरम सुकल परि ध्यान प्रातम सौ लष ल्याइक, तो पाबे निरवाए ॥३२४५।। इति श्री पपपुराणे उभय बल मान विधान
५१ व विधानक
चौपई पुख के लिये सैनिकों का प्रस्थान
रावण नप इम प्राज्ञा दई । साजो सैन भूप सज गई । रामचंद्र सों करियो जुध । सन कू भई मोह की बुधि ।।३२४६।।