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पपपुराण
इन्द्रजीत मेघनाद इम कहै । इन्द्रभूप हम ही तब गहै ॥ इह विध हम तें कोई न लड्या । हावत उपरि ढोवा कर्या ।। ३१२६।। स्ट सर गोला जिम मेह । घरती गगन उडी अति पेह ।। गदा खडग की हो मार | जित जित दीस बानर वारि 1।३१२७।।
जाफू पकड़े मई झझोर 1 लंका मा हुया तब सोर ।। इन्द्रजीत द्वारा हनुमान को पाना
इन्द्रजीत विधा संभार । नाग पास है इन्द्र का जाल ।।३१२८॥ बासौं बांध लिया हरणवंत । माऱ्या धरणां किया दुखवंत ।। रावण पास प्राया हणुमान । कोप्या क्रोध बहुत मन प्रान ॥३१२६॥ बांधि मुसक हथकडी दास । गल में नौष जडे तिहंकाल ।।
पांव माहि बज्र सांकुली । मारे वहुविध हणवंत बली ।।३१३०॥ प्रमजीत द्वारा हनुमान का परिचय देना
इन्द्रजीत रावण सु कही । मुमगोचरी का ट्रत है ग्रहीं ।। इण पहिली महेन्द्रपुर जाय । महेन्द्रसेन जीते तिहं ठाइ ।।३१३१॥ भेजा ताहि कनै रामचन्द्र । गंधर्वसेन का मिट्या दंद ॥ मुनिबर का उपसर्ग निवार । भेज्या किषधपुरी मझार ॥३१३२।। अबकोदि लंका का तोहि । बज्रमुखी नै मार्या ठोहि ।। संकासुन्दरी प्राप विधाहि । बहरि पाया का मांहि ।।३१३३।। सीता ने खबर राम को दई । मंदोदरी प्रादि मान मंग भा ॥ पुहपक वन इन दिया उापि । वाहे बहुप्त हाट बाजार ॥३१३४।।
मिंदर घरणां मिलिया द्वार । सुरसूभट बहु काले मार !! रावण का कोषित होना
फोड्या कुना जाब तालाब । रावण कहै क्रोध के भाव ।।३१३५।। मैं तोहि ऊपर राल था मया 1 तू उठि रामचंद्र पं गया ।। राम लक्ष्मण सौ कद की प्रीत । उनको मिल्या भया तू मित्त ।।३१३६।। मेरा घर तुम कू नही भया । मेरा गुण तू बीघर गया ।। खरदूषण की तो कुन्या दई । देस मांहि तो कीरत भई ।।३१३७॥ बहत देस दीने तुम सही । तै प्रापणे मन अंसी नहीं ।। कहां राम लक्ष्मण तापसी । भ्रमति भ्रमति उन पाई महीबसी ।।३१३८।।