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पधुरास
कोस सब झंझोडे बांह । हनुमान अहटाई जांहि ।। सकल नारि घरती मैं मिस । कैरी हनूमान को लेइ चल ।।३१.२।।
वसन फाडि लों, सिर केस । गई तिहां दणकष नरेस ।। हनुमान का सौता से निवेरन
सीता सों बोलौं हनूवंत । तुम कछु मन मां धरो मति चित ।।३१०३॥ जो तुम कहो तो प्रब ही ले जाउं । अपर्णी मन राखो चित ठाउं ।।
अन्न खावो जल पीवो मात । नमस्कार कीयो बहु भांति ।।३१०४।। हनुमान द्वारा भोजन
इला नालग यो कदै हनन । करो रसोई जन बहुमंत ।। किये पकवान सुगंधा घणा । यहरि रसोई उत्तिम दणा ॥३१०५।। भात दाल उसम बहु घृत । प्राशुख जल सों स्नान करंत ।। श्री अरिहंत का सुमरण किया । एक पहर दिन कर उगिया ।।३१०६॥ मन में भैसी इच्छा धरी । कोई मुनीस्वर मावं इस घड़ी ।। प्रथम सुपात्र नै धुवान । पाई हम करिहं जलपांग ॥३१०७॥ पूरब जनम किया मैं पाप | तो इह भयो मोहि संताप ।।
के में दान कुपात्र है दिया । के सुत मात बिछोहा किया ।। ३१०८।। सोसा द्वारा प्राहार ग्रहण करना
सीता जी लीयो पाहार ! इला हणवंत जौम्या तिण बार ।। सीता का चिन्तन
सीता चित्त राम की बात । तीरथ करण पिया संग जात ॥३१७६।। के में मुनिवर कियो अपमान । के जल पीयो अणछाण ।। के मैं भोजन सायो राति । के जिन घरम न सुहात ।।३११०॥ श्री भगवंत भज्या निण भाब । समकित चित्त न हुबो मुहाव ।। कूगुरु कुदेवा की कीनी सेव । कुशास्त्र उर धाऱ्या भेव ।।३११११॥ कंदमूल फल खाये घणे । भला शास्त्र मन घर ना सुण ।। परनिंदा कीनी अधिकाइ । तो इह उदय भया मुझ प्राइ ।।३११२।। अथ पात चुवै हग भरे । तबइ हनुवंत वीनती करें ।। जं तुम मात चलो मुझ साथ । पहुंचाऊं तुमनै जिहां रघुनाथ ॥३११३।।