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पापुरात
खरदूषण सू करी पुकार | कपडे फादि लगाई हार || खरदूषण मति क्रोध कराय । रोन्यां ले तिहां घाये प्राय ।। ३०७३।। लक्षमण वासू मांडभो जुध । रावण ने इह पाई सुघ ।। कोष में चले पुन्हप विमाण । दंडक वन में पहुंच्या प्रांन ।।३७७४।। तुम को देग्नि राम के पास । बाकी सुधि गई सम नास ।। गजनीत सहु वीसर गई । तुमारे हरन की इछा ठई ॥३०७५।। सिंघनाद रावण पूरिया । रामचंद्र लक्षमण 4 गया ।। रावण में तब तुम हरचा । जटापंखी बल करि तिहां लड्या ॥३०७६।। वाको गहि रावण मारिया । ऊपर बैं धरती डारिया ।। लक्षमा रामचन्द्र क देख । कहिक तुम क्यों पाए लेख ॥३०७७॥ सीता छोड प्रामे एकली । एह तुम बात करी नहीं भली ।। बेग जायो मीता के पास । तुम बिन दुख होवेंगा गात ।।३०७८।। द बन चेहर सब खोह । उनकां तुम सेती अति मोह ।। सिवकति पाया पंपी जटा । देखा अतसमय रन बटा १.७६।। पंच नाम सुरणाए कांन । अटा पंषी गया स्वर्ग बिमाण । लक्षमण खरदूषण नै मारि । तुमरा हरणे सुण्या तिरण बार ॥३०८०॥ रतनजटी तुम पाछै दौडि । प्राण करी रोवण सूझोडि । रतनज टी के लाग्या पाव । समुद्र में पड़े रतनजटी राव ॥३०८१।। उहाँ त तिरि कंचू गिरि गए। रामचन्द्र ने मेव तिण दिये। बिराधित मैं लंका पाताल । प्राणि बिठाए रघु ततकाल ।।३०५२।। मुग्रीव राज परपंची छीन । तात हा फिरथा प्राधीन ।। रघुपति परपंची को मारि । सुग्रीव राज दियो तिबार ।।३०८३।। उनी वा किया उपगार । ता कारण हम कियो है विचार । रावण तीन खंड का भूप । सीलवंत करुणा का रूप ।।३०६४।। ताकी कीरत है संसार । अठारह सहस ताक घर नारि ॥ मैं सेवक रावण का सही। मेरा बचन फिरंगा नहीं ।।३.८५।। तुमकू देगा मेरे साथ । ले पहुंचाऊ जिहां रघुनाथ ॥
सीता हनुमान सू कहै । तुमसे कि राम लिंग रहे ॥३.७६।। मन्दोदरी का कथन
राम पास कित्सा दल जुनया । मंदोदरी बोले एहो षड़ा ।। के इह बली के राम लक्षमणा । और न कोई बस्या जसा ।।३०८७॥