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मुनि सभाचंद एवं उनका पापुराण
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जब होता रावण का काम । हनूमान करता संग्राम ।। वह वाके भाई की ठोर | अंसा हितू न कोई और ।।३०८८।। चंद्रनखा की दीनी पुत्री । अंसी याकी कुपा करी ।। या के कर्म प्रेसी मति दई । याकै हिरदै भैसी मति दई ।।३०६॥ कहां राम भुम गोचरी । ताके दूत होह माया इस पूरी ।। भुशीव मति मरणे की भई । किंपदपुर तपसी कुदई ।।३०६०।।
अब जो सुणे रावण पण बात । देख जू तोहि लगायें हाथ ।। हनुमान मन्दोदरी संवाद
हणवंस कह मंदोदरी सुणु । तो पं बुधि नपं को गिणु ॥३०६१।। तरी धुधि भई होला । खोट भुति राव को दास । तोहि कहे थे नव जोबना । तो में गुण एका नहि वण्यां ।।३०६२॥ तो मैं जो होता गुण सार । तो वह क्या नै हरता परनारि ।। खोटा करम उद तुज भया । तेरा गुण सगला गिर गया ॥३०६३३॥ रावण की पूती त भई । पटकी महिमा सगली गई। तू वहरण रावण की सही । वाके जीव का तोकू डर नहीं ।।३०६४) से मति दई मरण की ताहि । तोहि रंडापा की भई चाहि || मंदोदरी पादि कोपी सब नारि । रे बानर कहो बचन संभारि ॥३०६५॥ कहो राम लक्षमण कूमारि । बानर बंसी कहा गंवार ।।
जितने जुड़े राम के पासि । होसी उनु सगला को नासि ॥३०६६॥ सीता का उत्तर
सीता चोली सुगों सब तिरी । राम लखण की कीरति खरी॥ पहला बरबर मलेछ कू जीति । वजावर्त ते सब भयभीत ॥३०६७।। अंसा धनुष पहाया तुरंत । उनसे को नहीं बलवंस ।। खरदूषण मारघा संबूक । उनका कारण है महा अचूक ।।३०१८॥ सेना का नाही कछु काम । रावण कू मार नहीं राम ।। समुद्र उतरि जो पावै एक । रात्रं रघुबंस की टेक ।।३०६६
तुम अब निश्च होस्यो राह । तुम जसीति मा होस्यो भांग ।।३१.०॥ मन्दोदरी का नाटक
मंदोदरी प्रादि प्रहारह हजार । सहुं मिल बोल मुह थी गाल ॥३१०१॥