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मुनि सभाषद एवं उनका पद्मपुराण
सोता के बचन
सीता कहूँ सुरणो हणुमान । रामचन्द्र आयें इस भांन ॥
तो मैं चलू' तिनों के संग। उणां विषां चलयां नहीं रंग ।। ३११४ । ।
हनुमान का प्रस्थान
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सीताजी की आग्या पाइ विदा भए तब हावंत राय ॥ पुहष गिरिवर पर टाढा भया तहां बहुत आई है तिरिया || ३११५सा वन क्रीडा देखें थी नारि । हृणुवंत रूप देखिया प्रभार ।। वाजे वीण सुणावें तांन । कोई कह रही हणुमान ।। ३११६॥
मन्दोदरी का रावरण के पास जाना
मंदोदरि संग गई सब तिरि । रावण सु पुकार स्यां करी ॥ हनुवंत तरण को विरतांत । उठ्यो कोपि रावण मुशि बात ।। ३११७ ॥
रावण का क्रोषित होकर युद्ध का ग्राह, वाम
सूर सुभटां कु आज्ञा दई । वेगा मारो हनुवंत जई ॥
दोड्या बहुत सुभट तिए बार हाथों में नांगी तलवार ।। ३११५ ।। गा गुरज बरछो तोर कहांन । इाँ प्रकारे घेर्यो हनुमान || हनुमान का युद्ध कौशल
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लांगुली विद्या भली संभारि । ठोरि ठौर के वृक्ष उारि ||३११६।। मारे सुभट किये सिहां बेर । उजाडि दिया उपवन चिहुं फेर ॥
fear थंभ मिंदिर सब काहि । चौपट किये निहां ढेर उखारि ॥३१२०॥
सूरवीर झुके सिंह ठौर । कायर भाजि गये सब और ॥ हनुमान बैठे तिन यांम जाके लिए राम का नाम ॥ ३१२२ ।। रावण सुणु सुभट परिहार सब भेज्या बहुला असवार ।। इंद्रजीत ने मेघनाद । जारौं सकल जुध ग्रन बाद ॥ ३१२२ ।। मारि मारि करि दौड़े घणे । जइसे जम प्रापन के हणं ॥ हनुमान सनमुख भया प्रांरण | मारई सिला करे घमसारण ।। ३१२३॥ मैंगल को पकड़े बिहु पास फेंके ताहि घो रहे ठांय ॥ तर उपाद्धि कर मारे सीस। एक ही बार मरें दस बीस || ३१२४॥ सेनां कुभी राक्षस वंस । इन्द्रजीत मनमें करें संस ||
हुणवंत एक महा बलवंत । जिए मारे सगले सामंत ||३१२५||