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पमपुराण
इनै अपणा नहीं जाण्या मर्ण । मीर जाय मीता का हाँ । राषण का विभीषण पर धावा बोलना
उधो कोप रावण सुगि वात । चन्द्रहास ऊपरि धरि हाथ ।।३२०२।। भभीषण क मारण निमित्त । असी खोदि विचारी चित्त ।। भभीषस का तब चढयो विरोघ । गह्या थंभ पाथर का सोध ।।३२०३।। दोऊ त्रीर क्रोध के भाय । कुभकरमा बोल्या समझाय ।। भाभील सा सुकाहै लु परि जाइ । तब लग कोष घटै मन मांहि ।।३२.४।। मीतल वचन रावण ने कहै । भभीषण लंका में नहीं रहै ।।
मात पिता बहु पायें पर्छ । सगला सजन अरज करै ।।३२०५।। विभीषण का राम के पास जाना
तीस क्षोहणी दल लिया माघ । चल्यो सर्ण जिहां रघुनाथ ।। तीन सहस लिया संग नारि । और सकल छोडया परिवार ||३२०६॥ हंस द्वीप है जिहां श्री रामचंद्र । गयो भभीषगल को सब दु'द ।। वानर बंसी भभीषण देख । असी समझ कर मन प्रेष ॥३२०७॥ रावण भेज्या है जुध निमित्त । हनुमान अवि संभल्या सामंत ।। गहि हथियार उमा सबै तिहां । प्रागन्या होय तो अब मार इहां ॥३२०८।। वस्त्रावर्त धनुष गहि राम । समुद्रावतं लक्षमण गहि साम 15
भभीषण सेना बाहिर रही । भाप प्राय पोल्या सौ कही ।।३२००६।। विभीषण का द्वारपाल से निवेदन
भभीषण प्राय खडा है वार । मेरा जाय कहो नमस्कार ॥ प्राग्या होय तो दरशन करै । सेवग प्राइ चीनती कर ।। ३२१०।।
करी वीनती हूँ कर जोडि । भभीषण भा है तुम पौलि ।। मन्त्रियों का परामर्श
प्राग्या होय ना देव च । मंत्री नाग मतो कर्ण ।।३२११।। रावण तना भभीषण बीर । कछु परपंच पाया तुम तीर ।। अव इह जो मांडेंगो राडि । ग्रावायो मति सभा मझार ॥३२१२।। मति सागर दूजा मंतरी । उरणी इक बुधि उपाई खरी ।। सदस्य भभोषण भयो बाइर । दूती इसा कह गई सबेर ।। ३२१३।। तुमारी सर्ण भभीपर पाव । कपा करो तो दर्शन पाइ ।। भभीषण रामचंद्र कु देखि । लक्षमण तणु रूप अति प्रेप ।।३२१४॥