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पचपुराण
सील रतन मत खोवो वीर । सीलवंत सुख लहै सरीर ।। सीलवन की कीरत हो । सोहं न कोई ।।७।। लक्षमण खरदूषण ने मारि । सेनां सकल करी तिरण द्वार । रामचन्द्र लक्षमण दोक वीर । जान सकल जुध की भीर ।। ३०४८।। जब घे प्रागा इस ठौर । मांचंगी लंका में रोड ।।
सीता देई रघु पास पठाइ । प्रथवी तणे दुःख मिट जाय ।।३.४६।। रापण का कोषित होगा
इतनी मणि कोप्यो दस सीस । मेरी कवण सकै करि रीस ।। रामचंद्र से मारे घणे। इनको गिणती मा को गणे ।। ३०५० ।। मव में सीता मांगी सही। अंसा कवण पुरुष है मही ।। सीसां भेजा उन पास । लार्ज कुल हो उपहास ॥३०५११ कहा करेगा तपसी राम । मोसुजीत सके संग्राम ।। जीती है मैं सगली मही । मोकू किह का ही डर नहीं ॥३.५२।।
हनुमान का वानर रूप धारण कर सीता के पास पहुंचना
भभीषण कही हगवंत ने प्राय । हनुमान उठि वन में जाय ।। प्रमदा बन में बैठी घणी । फलें फूल वृक्षावली वणी ॥३०५३।। लंगूर रूप विद्या सूकरमा । सीता कू देखण तरु परि पढपा ।। वदन मलीन हंगलो छ हाथ । सुमरण जाप जप रघुनाथ ॥३०५४॥ जाकै राम नाम का ध्यान । वाफ चित्त न पाये मान । दई छाप सीता हिंग जाइ । निरषत सीता नयन उघाडि ॥३.५५॥ तज्या सोग मन भयो उलास । दूती मुख देख्यो सु प्रकास ।। जाय रावण सो विनती करी । सीता सोग तज्यो इण घडी ।। ३०५६।।
दूती ने दीया बहु दान | मंदोदरी पठई सीता थान ॥ मन्दोदरी और सीता की वार्तालाप
मंदोदरी प्राय सखी संजुक्त । सीता की प्रस्तुति की बहुत ॥३०५७।। सीता बोली तवं रिसाइ । हे निलम्ब मति पाप कहाइ ॥ राम तरणी सुधि पाई प्र. । मेरा सोग विसर गया सबै ।।३०५८।। भली करी ते छोटा सोग । रावण सुभुगतो सुख भोग | तुमकुं सब तै करि है बड़ी । भलां समझि से छोडी गुढी ।।३.१६||