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दूहा
दूती फिर आई सबै किये बहुत उपचार |
सतरा करतार सु, कवर डुलावा हार ।।२८१३||
चौपड
रावरण की व्यकुलता
रावण से दूत कहे वया सोता तो खोले नहीं नयण || अन पांणी तजि लियो संन्यास 1 ऊंचे नीचे लेत उसास ॥। २८१४।।
पद्मपुराण
बहुत भांति समझायी ताहि । मंत्र मंत्र कछु लागे नाहि ॥ सुगी वात रावण अकुलाइ । हाथ मसलकर बहु पछाइ ॥१२८१५||
षिण बाहर बिण भीतर जाइ । ता के चित्त कछु न सुहाइ ॥ भ्रम्या चित्त सब सुध वीसरी । चिना मिटे न एक घरी ॥२६१६ । भभीषरण व्यास मंत्री ते डाय | बंटि मतो इं भांति उपा!
मस्त्रियों द्वारा विचार
रावण क्या ले विभल हुयो । वाको कछु भेद न पाइयो ।।२८ १७ ।। सुभन मंत्र मंत्री इम कहै। खरपा के सोग में रहे || इह आश्चर्य विचारं खरा । बारह वर संबुक तप करा ।। २८१८ ।। सूर्यहास खडग तब लाया । लक्ष्मण नै पल ही में गया || वे दोन्यु थे मेरी वह अँसा मारय छिन मांहि ।। २५१६॥
ता कारण रावण दुख वरं । अम्मा चित्त सुधि बुधि बोस रे ।। पंचमुख दूजा मंत्री कहै बैन । गवा को इस विश्व नहीं चैन || २०२॥ लक्षंमरण एक खरदूषण दल घरां। उन तो सब सेन्या न हन्यां || खरदूषण मार्या संबूक । तातें होइ रह्या है मूक ।। २८२१ ।।
सह श्रामती तीजी मंतरी । उनतो समभि बात कही खरी || यश्वग्रीय प्रतिनारायण हुआ । सुप्रतिष्ठ नारायण ने ष्यो किया ।। २६२२ ॥
श्रत्र अह लक्ष्मण है प्रति बली । खरदूषण की सेन्यां दली ॥ मार्क सेन्यां जुष्टत न दार रावण के मन इस विचार ३२८२३||
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चांचा मंत्री बोलं विनयवंत वह तो रामचंद्र सु मिल्या उसका मित्र बली हनुमान । रामचन्द्र सों मिलि है मन || तो लंका टूट हि घडी । ऐसी बात चित्त में घरी २८२५॥
विराधित विद्याधर बलवंत || वाका हित सुग्रीव सों मिल्या ।। २८२४