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मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
अमृत गुपति मुनि देख्या सही। अंजनी सू ́ सब पिछली कही ।। इह राजा महेन्द्रसेन 1 मुझ माता कू देता नहीं चैन ॥२६८५|| तो क्यूं होता इतना दुख रतन खुल तँ पाया सुख || अब मैं दा सो लेहूं बेर । महेन्द्रपुर कू मारू पेर ।। २६८६ ।। हनुमान द्वारा महेन्द्र सेन से बदला लेना
बाजे मारु चिक्यो महेन्द्रसेन । सूर सुभट सूं बोलं वया ॥
करण देस का श्रध्मा राइ | सेना सजो युध के भाय ।। २६८७।।
दुधा छूटं विद्या बारण प्रसन्नकीत्ति भागें बलवांन ॥ भया जुध प्रनीति को बांधि । महेन्द्रसेन कोप्या सिर सांषि ।1२८८
ग्र असदन हार | धाए सनमुख करि मारामार ॥
पर्वत सिला विरख उखारि । पर्ड की हनुमंत परि मार ।।२१८६ |
तब हनुमंत विद्या संभारि । वानर बहुत भए विकराल || जा कू पकड़े लुचं देह । कबहु उठाइ सिला कु लेह || २६६०||
जाकू मारें होइ संहार । तोडया र महेन्द्र तिरए बार ॥ कूद चढे हणवंत विमाण । मारं मुकी क्रोध मग प्रांण ॥२६६१॥ पुरुषा सम नाना कु जारिए || | पुकारें सकल लोक जे साथ ११२६६२ ॥ अंजनी सुत इह है हनुसनि ।।
हनुमान तब राखे कारण उस ऊपर तू उठाव हाथ
दुहिता कु मार अभ्यांत
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परस्पर मिलन
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इतनी सुरात मिल्या गल ल्याइ । जैसा सुखं था तिसा दिखाइ ।। २६६३॥ कुल मंडण तू उपज्या पूत । सकल गुणां लक्षण संजुक्त ॥ प्रसकीति दिया तय छोडि । मिलकें प्रस्तुति करी बहोड ।। २६६४।। पुर मैं प्राणि महोछा करें | सब विरतात सुरिण मन में घरं ॥ मोकू हे कारज उत्ताल | तुम किषंदपुर जाज्यों दरहाल ।।२१६५ ।। रामचंद के सेवजं पाय । सेना ले वेगां तुम जाय । महेन्द्रसेन प्रसकीति चले । श्रीपुर जाइ मंजनी सूं मिले ।।२१६६।। बहुत दिया लक्ष्मी ने चीर । कथा कही सुख हुन सरीर ।। हनुमान लंका कूटं गया हम किमंदपुर कुं गम किया ।। २६६७।।
रामचंद्र लक्ष्मण में जांय । सुणी सुरत सुग्रीव नरनाह ॥ महेन्द्रसेन श्राइया नरेस | चादर बहुत दिया श्रानंद २६६८।