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सुति सभा एवं उनका पुनग
हया कंठ मुजा सोभंत । उदर कमर केद्रि की अंत ॥ कदन्नी जंत्र कमल से च । नख की जोति जैसी ससि करणं ।।२६६०॥ रवि प्रताप शशि की ज्योति । हनुमान को दर्शन होत ॥ राम का हनुमान को गले लगाना
चरण कमल बंदे हणुमन्त । रामचंद्र भए कृपावंत ।।२६६१।। कंट लगाइ सनमुख मठाइ आदरि मनोहारि बहु भाय ॥
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पवनपुत्र द्वारा प्रस्तुति
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राम नांम त्रिभुवन आधार ।। २६६३॥
पवन पूत बोले कर जोडि । प्रभू तुम गुन का नावे वोरि ।। २६६२ ।। जैसे रतन समुद्र में घने ते गुरण जाय न किस पैंगिणें || तुमारे गुण प्रभू अगम अपार तुम जीया बरबर मलेछ । बकाव सिंघोदर राजा ने जोत । पिता वचन दंडकवन में लह्या सूर्यहास । संधुक खडदूषण कीए नास ॥ प्रति सुग्रीव विद्या बेताल | तुम कू देषि भाज्या तत्काळ १४२६६५।१ परपंची कु मारमा ठोर । सुग्रीव राज दीया बहोर || किरण ही पास न हुवो न्याव । सतक्षय कीयो तुम उपाय ।।२६६६ ।।
धनुष को खँचि ॥।
की पाली रीत ।। २६६४ ।।
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कहां लो धरणों तुमारा उपगार । इह जस कीरत चले संसार || बेद पुराण कथा यह चले। सीता को आरणों को मिले ।। २६६७ ॥ सफल जनम मेरो सब सही हणुमान बात एकही ॥ रावण परि संका को जाउं सीता को आप इस ठांव | २६६८ ।। रामचन्द्र बोले जगदीश जे तुम वचन मानें दशशीश || तो सीता मां हम पास चोरी सुं श्राभ्यां उपहास ।। २९६६ रावण चोरी सृ ले मया । तुम चोरे तो प्रपयस नया ॥ सीता पाणी सब सज्या वाकु योनुं कुल की लज्या ॥२७०॥
इम बिन यह छोगी प्राण । इह मूंदडी दीज्यो सहिनां || कहियो मन रखियो निषचंत । किबंधपुर राम लक्ष्मण निवांत ।। २६७१ ॥
पाणी वाकु खबाज्यो बाद। निरभय मम राखियो बीरपाइ ॥ जांबुनंद बोल्या अंतरी । उन इक बुधि बताई खरी ॥ २१७२ ॥
रावण लंकापति बलवंत । जिसकी प्रागन्यां तीन बंड ॥ कुंभकर भीषण वीर इन्द्रजीत मेघनाद प्रति घर ।।२६७३।१