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पापुराण
महा
भया मिलाप कुटव सू, महेन्द्रसेन नरेन्द्र ।। हनुमान पर अंजनी, माया प्रति प्रानन्द्र ॥२६६६।। इति भी पमपुराणे महेन्द्रदोहिता मिलान विधानक
४५ वो विधानक
चौपई दधिमुख दीप मातरा देस । मंदिर स्वेत शोभा बहु भेस ।। वन उपवन में बावरी कूप । महा रमणीक सुहावै रूप ॥३०००।। मंतर वन सुभ थांनक खगे। अजगर स्यंघ देख मन डरो ॥
तिहां दोइ मुनिवर तप करें। प्रातम ध्यान सु निश्चघ घरै ॥३.०१।। कायात्रों द्वारा तपस्या
कन्यां तीन फिरें तिरा ठाव । दावानल सुजल ए भाव ।।
एक तप कर न डोले वित्त । चनं पसेव परीसे सहत ।। ३७०२।। नद्वारा दावानल सुझाना
हनुमान कु उपजी दया । समंद्र मांहि त जल भर लिया ।। दावानल बुझाई दीयाइ । सगला तपसी लिया बचाइ ।।३००३।। उनक विद्या को सिघ भई । जाय भेक प्रदक्षिणा दई । दोई घडी में पाए फेर । मुनि दर्शन कीया तिरा बेर ।।३.०४।। हनूमान कीया नमस्कार । पूछयो कन्या का व्यवहार ॥ .
तुभ सप करो कवा निमित्त । अपनी बात कही उत्पत्ति ।।३.०५।। के विवाह की भविष्यवाणी
मिवादेस नृप गंधर्वसैन । जाकी कन्या बोले नयन ।। अमरवती राणी गर्भ भई । चद्ररेषा पहनी थई ।।३.०६।। भंगमाला विद्युतप्रभा तीसरी । हमारे पिता स्वयंवर विष करी ।। दस देश के नृपति प्राय । कोई न हमारी दृष्टि पडाह ।।३००७॥ मनिमगह नृप फिर गये । परियण मांहि सोच अति भए । मुनिवर क् पूछयो मो तात । ए कन्या दीजे किरण मांति ।। ३.०८।। मुनिवर बोले म्यान बिचार । विट सुग्रीव जो मार बार ।। सो होसी इएका भरतार | मुनिवर कह गए उपगार ॥३.६॥