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पपुराम
लंका के रस्त्र वाले घने । पंपी जारण न पाच किणे ।। तुम इण विध जाऊं पर छन्न । लख न कोई इसे जतन ।।२९७४|| तुम हो एक वहै हैं घणे । तिनसुधिगाडयां नहीं वरणे ।। मनुष जनम पावना कठिन । देख सोच के कीज्यो गमन ।। २६५५।। हनुमान जब चनें विमाण । त्रिकुटाचल को कियो पयान ।। रघुपति गले लाइक मिल्या । नक्ष्मण सादर कीने भल्या ।।२९७६|| सीव लगै भूपनि सब प्राइ । पहुंचाए तिहां हणुवंत राय ।। हणुमान सुग्रीव मु कहै । राजा सब किषिदपुर रहैं ।। २६७।। मबरै लोग बुनाबो सूर । सेन्या जोडो दल भरपूर ।। माग चले रघुपति के काम । मनमें सुमन सलाम ||२६७८॥
डिल्ल रामचंद्र जगदीसर परमपुनीत हे ।। भव भव की हैं पुन्य धर्म सों प्रीत है । सूर सुभट सब प्राइ मिले बच्च पती ।। राबरण भया सुन हीन राम आगी रती ।२६७६।।
चौपई प्रगट्यो पुनि मिलइ सब सुख । जनम जनम का मूल दुःख ।। सज्जन मित्र मिल बह लोग । मनबंछित सब मुगतै भोग ।।२६८०॥ ताते पुनि करो सब कोइ । पुत्र कलित्र लक्ष्मी बहु होइ ॥ रामचंद्र का मुणं पुराण | भव भव पात्र ते कल्याण ॥२६८१।।
दहा चद्धि विमाण हणुमंत, चल्यो राम के काज । भूर सुभट अति ही बली, रूपयंत सव साज ।।२६८२।। इति श्री पद्मपुराणे हनुमान संकर प्रस्थान विधान
४४ वां विधानक
चौपई महेन्द्रपुर नगर
बढि विमाण देखे बहु देश । दंती पर्वत महेन्द्र नरेस ।। महेन्द्रपुर की शोमा भति वेष । भया मोह मन प्रति परेप ।।२६८३।। इस नगरी मेरा ननसाल । गर्भ समै मा दई निकाल ।। मेरी माता कुं दुख धीमा । परजक गुफा में मेरा भव भया ।।२६८२॥