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पद्मपुराण
करि जोडि करि बोले दूत । निरभय वचन कहै अदभूत || किषंदपुर का राजा सुग्रीव माया रूपी विट् सुग्रीव || २६४५३१ रान लिया सुग्रीव का छीन । सुग्रीव आप किरिया आधीन ।। राम लक्षमण भूमिगोबरी । ति जाइ वीरगती करी ।। २६४६ ।। रामचंद्र का दरसन पाय तिण सु भेद कह्यो समभाइ ।' मेरो दु:ख दूरि करो तुम दूरि । कांम करो करुणां भरि पूर ।। २३४७।। बिट सुग्रीव दूत दोउ जुटे। बहुत सुभट दोऊ घां कटे ॥
रामचन्द्र ने मारया चोर । सुग्रीव ने दीया राज बहोरि ।। २६४८ ॥ इह सुरिण हनुमान श्रानंद । धनि धनि पुरुष राजा रामचंद्र ||
पर दुख भंजन हैं श्रीराम । कोटिसिला उठाई लक्ष्मण ताम ।। २६४६॥
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उनकी सीता किया ही हरो | तिए थी खबर तुम कोई नीकली ॥ हनुमान सुरिंग प्रस्तुति करें। कुल कलंक सुग्रीव के हरे ।।२५।।
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मंडला सुग्रीव की धिया । पिता राज सुणि हरवा हीया || आवरमान दूत को दिया । उचित दोन बंदीजन लीया ।। २६५१|| सुगात दुःख समा बुझि गया । बोजा बाज बधावा भया ।। हनुमान द्वारा राम के दर्शन करना
हनुमान सेन्यां ले वरणी । बैठि विमान सांभा प्रति वणी ।। २६५२।। घोडे हस्ती रथ सुखपाल | लागे कनक रतन बहु लाल || राम लक्ष्मा दरबन निमित्त । किषिधपुर प्राये हनुमंत ।। २३५३|| कोडि सिला का सुन्या बखान । अनंतवोर्य का वचन प्रमाण || ये गवस का करि हैं नास हूँ सेवा करिहं उग पासि ।। २६५४।२ किवंदपुर की समराई गली सुग्रीव भूप माने अति रली || घरि घरि बोधी बंदरवाल । घर घर छाये हाट बाजार ||२६५५ ।। बहुत लोग लगवाणी चले । जाय करि हनुमान सु मिले || हस्ती पर हनुमान कुमार । सेन्मां चली नगर मकार ।।२६५६ ॥
सिघासरण बैठे रामचन्द्र । लक्षमरण पासि सो जिमचंद सुग्रीव नल नील बैठे तिण पासि । विराधित मंगद अंग सुवास ।। २९५७॥
बहुत नरेन्द्र सभा में खडे । सूर सुभट महागुरण भरे ॥
छत्र वर रघुपति सिर करे । वदनही जोति सोभा प्रति टरें ।। २६५६ ।। स्वाम केस नोषण प्रति वरणे । नासा कपोल विराजे घर || रक्त उष्ट्रदंत छवि कुंद हीरा जोति काफी बुंद ||२५||