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पद्मपुराण
अषण को मृत्यु के सम्बन्ध में भविश्यवारणी
मेरी भाव कवण है हाथ । ब्योरा सू कहिए जिन नाथ ।। श्री भगवंत की वांनी हुई । कोटि सिला उठाव जो कोई । २६१६।।
वाम करि है तेरी मीच । निसचे जागि बात मन बीच ।। कमन द्वारा शिला उठाना
जो तुम सिला उठावो जाइ । तो राबण कू मारो भाइ ।।२६२० । लखमण कहै उठाऊं सिला । तब मो पौरिष देखा भला ।। सुग्रीव साथ नुपति सब चले । साजि बिमरिण सौंज मौ भले ।। २६२१।। राम लक्षमण विमारण परि बैठि । पहुचे कोटि सिला के हैठि ।। परम निसा गई सिला के पासि । तिहा होड भिवपुर की प्रासि ।।२९२२।। नमसकार करि बारंबार । माठ मिध गुण पढे संभार || बहुत विनय सों पूज चिनेम । मुनिसुव्रत पूनिया नरेस ॥२६२३।। लक्ष्मण पवधा पंच प्रभु नाम । मिला उठाई लाई तिम काम ।। जोजन एक सिला उच्चंत । मठ जोयरण चकली दीपंत ॥२६२४॥ दश जोजन की हैं लंबाइ । लक्षमण ततक्षरण लई उठाइ ।। जंघा लग पहूंचाई मान । बहुर परी तब वाही श्रान 1॥२६२५।। जज देव ददभी भई । ए लक्षमण नारायण मई ।। नल रु नील अन मुग्रीव । सब में मता मैं गाही नींव ।।२६३६।। बहरि नरेन्द्र कई प. बन्नी । कथा नारायण की तब चली। सात नारायण ग्रागै हुमा । तिण थी प्रतिनारायण मुवा ।। २६२७।। केई कहै इन उठाई सिला । रावण कैलास उठाया भला ।। कोई कहे रावण विद्या सहाइ । हम लहै विद्या लेड उचाई ॥२६२८॥ इन उठाई देही के बल । लक्षमण महाबली भू मटन ।। कोऊ कहै ए दोनू भात । रावण का दल का न जात ।।२६२६।। ए उसको जीत किस भांत । अंसा करो दोनू घर सात ।। रामचंद्र पं भूपति गए । राम कह कीले किम पए ।।२९३०।। गि बलो लंका परि प्रबं । रावण मारि दाहों गढ सबै ।। कह भूप सुणो त्रिभुवन राय । जब वह सीता देइ पठाइ ॥२६३११! तो कीजे काहे कू जुध । हम वाकू समझा तुष ।। भभीषण ज्ञानवंत परमेष्ट । दयावंत है समाकित द्रष्ट ।।२६३२।।